नवग्रहों में सबसे क्रूर ग्रह शनि देव को माना जाता है की जिस पर नजर पड़ जाए, उसका जीवन नरक होने लगता है। काफी कोशिशों के बाद भी काम बनते नहीं, दुख काटे कटते नहीं और ऐसा लगता है जीवन से खुशियां रूठ गयी हों। यही लक्षण हैं शनि की दशा के, उनके प्रकोप के, लेकिन बजरंगबली का नाम लेने और उनकी पूजा करने से आप इन तमाम समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं. अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर शनिवार को शनिदेव संग पवनपुत्र की भी पूजा करने से ऐसा क्यों होता है, क्या है कहानी क्यों ऐसा विधान माना गया है।
इस सवाल का जवाब त्रेतायुग में छिपा हुआ है, कहानी उस समय की है जब माता सीता को ढूढते हुए हनुमान जी लंका पहुंचे थे, हनुमान जी जब पूरी लंका में घूम घूम कर लंकादहन कर रहे थे तो उन्होंने एक कारागार में शनि देव को उल्टा लटके हुए देखा। जब हनुमान ने उनसे इसका कारण पूछा तो शनिदेव ने बताया कि रावण ने अपने योग बल से उन्हें पराजित करके लंका में कैद कर रखा है, तब हनुमान जी ने शनिदेव को रावण की कैद से मुक्ति दिलायी।
इससे प्रसन्न होकर शनिदेव ने हनुमान से वरदान मांगने को कहा, तब बजरंगबली ने शनिदेव से कहा कि वो सब जो उनका प्रिय हो, जो उनकी आराधना करे आप कभी भी उसे परेशान नहीं करेंगे और तभी से शनिवार को हनुमान जी की पूजा की परंपरा शुरू हो गई।
इस सवाल का जवाब त्रेतायुग में छिपा हुआ है, कहानी उस समय की है जब माता सीता को ढूढते हुए हनुमान जी लंका पहुंचे थे, हनुमान जी जब पूरी लंका में घूम घूम कर लंकादहन कर रहे थे तो उन्होंने एक कारागार में शनि देव को उल्टा लटके हुए देखा। जब हनुमान ने उनसे इसका कारण पूछा तो शनिदेव ने बताया कि रावण ने अपने योग बल से उन्हें पराजित करके लंका में कैद कर रखा है, तब हनुमान जी ने शनिदेव को रावण की कैद से मुक्ति दिलायी।
इससे प्रसन्न होकर शनिदेव ने हनुमान से वरदान मांगने को कहा, तब बजरंगबली ने शनिदेव से कहा कि वो सब जो उनका प्रिय हो, जो उनकी आराधना करे आप कभी भी उसे परेशान नहीं करेंगे और तभी से शनिवार को हनुमान जी की पूजा की परंपरा शुरू हो गई।