चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिं सुनि निसिचर नारी॥
नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥1॥
नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥1॥
भावार्थ:-चलते समय उन्होंने महाध्वनि से भारी गर्जन किया, जिसे सुनकर राक्षसों की स्त्रियों के गर्भ गिरने लगे। समुद्र लाँघकर वे इस पार आए और उन्होंने वानरों को किलकिला शब्द (हर्षध्वनि) सुनाया॥1॥
* हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना॥
मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचंद्र कर काजा॥2॥
मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचंद्र कर काजा॥2॥
भावार्थ:-हनुमान्जी को देखकर सब हर्षित हो गए और तब वानरों ने अपना नया जन्म समझा। हनुमान्जी का मुख प्रसन्न है और शरीर में तेज विराजमान है, (जिससे उन्होंने समझ लिया कि) ये श्री रामचंद्रजी का कार्य कर आए हैं॥2॥
* मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥
चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥3॥
चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥3॥
भावार्थ:-सब हनुमान्जी से मिले और बहुत ही सुखी हुए, जैसे तड़पती हुई मछली को जल मिल गया हो। सब हर्षित होकर नए-नए इतिहास (वृत्तांत) पूछते- कहते हुए श्री रघुनाथजी के पास चले॥3॥
* तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए॥
रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥4॥
रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥4॥
भावार्थ:-तब सब लोग मधुवन के भीतर आए और अंगद की सम्मति से सबने मधुर फल (या मधु और फल) खाए। जब रखवाले बरजने लगे, तब घूँसों की मार मारते ही सब रखवाले भाग छूटे॥4॥
दोहा :
Doha:
Doha:
* जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज।
सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज॥28॥
सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज॥28॥
भावार्थ:-उन सबने जाकर पुकारा कि युवराज अंगद वन उजाड़ रहे हैं। यह सुनकर सुग्रीव हर्षित हुए कि वानर प्रभु का कार्य कर आए हैं॥28॥
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* जौं न होति सीता सुधि पाई। मधुबन के फल सकहिं कि काई॥
एहि बिधि मन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा॥1॥
एहि बिधि मन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा॥1॥
भावार्थ:-यदि सीताजी की खबर न पाई होती तो क्या वे मधुवन के फल खा सकते थे? इस प्रकार राजा सुग्रीव मन में विचार कर ही रहे थे कि समाज सहित वानर आ गए॥1॥
English: If they had failed to get any news of Sita, they could never dare to eat the fruit of Madhuvan. While the king was thus musing, the monkey chiefs arrived with their party.
English: If they had failed to get any news of Sita, they could never dare to eat the fruit of Madhuvan. While the king was thus musing, the monkey chiefs arrived with their party.
* आइ सबन्हि नावा पद सीसा। मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा॥
पूँछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपाँ भा काजु बिसेषी॥2॥
पूँछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपाँ भा काजु बिसेषी॥2॥
भावार्थ:-(सबने आकर सुग्रीव के चरणों में सिर नवाया। कपिराज सुग्रीव सभी से बड़े प्रेम के साथ मिले। उन्होंने कुशल पूछी, (तब वानरों ने उत्तर दिया-) आपके चरणों के दर्शन से सब कुशल है। श्री रामजी की कृपा से विशेष कार्य हुआ (कार्य में विशेष सफलता हुई है)॥2॥
English: Drawing near they all bowed their head at his feet and the lord of the monkeys received them all most cordially and enquired after their welfare. It is well with us, now that we have seen your feet. By Ram's grace the work has been accomplished with remarkable success.
English: Drawing near they all bowed their head at his feet and the lord of the monkeys received them all most cordially and enquired after their welfare. It is well with us, now that we have seen your feet. By Ram's grace the work has been accomplished with remarkable success.
* नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना। राखे सकल कपिन्ह के प्राना॥
सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ॥3॥
सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ॥3॥
भावार्थ:-हे नाथ! हनुमान ने सब कार्य किया और सब वानरों के प्राण बचा लिए। यह सुनकर सुग्रीवजी हनुमान्जी से फिर मिले और सब वानरों समेत श्री रघुनाथजी के पास चले॥3॥
English: It is Hanuman, Your Majesty, who did everything and saved the life of the whole monkey host. Hearing this Sugriv embraced him again and then proceeded with all the monkeys to see the Lord of the Raghus.
English: It is Hanuman, Your Majesty, who did everything and saved the life of the whole monkey host. Hearing this Sugriv embraced him again and then proceeded with all the monkeys to see the Lord of the Raghus.
* राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा॥
फटिक सिला बैठे द्वौ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई॥4॥
फटिक सिला बैठे द्वौ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई॥4॥
भावार्थ:-श्री रामजी ने जब वानरों को कार्य किए हुए आते देखा तब उनके मन में विशेष हर्ष हुआ। दोनों भाई स्फटिक शिला पर बैठे थे। सब वानर जाकर उनके चरणों पर गिर पड़े॥4॥
English: When Shri Ram saw the monkeys approaching with their mission duly accomplished, He was particularly delighted at heart. The two brothers were seated on a crystal rock and all the monkeys went and fell at Their feet.
English: When Shri Ram saw the monkeys approaching with their mission duly accomplished, He was particularly delighted at heart. The two brothers were seated on a crystal rock and all the monkeys went and fell at Their feet.
दोहा :
Doha:
Doha:
* प्रीति सहित सब भेंटे रघुपति करुना पुंज॥
पूछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज॥29॥
पूछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज॥29॥
भावार्थ:-दया की राशि श्री रघुनाथजी सबसे प्रेम सहित गले लगकर मिले और कुशल पूछी। (वानरों ने कहा-) हे नाथ! आपके चरण कमलों के दर्शन पाने से अब कुशल है॥29॥
English: The all-merciful Lord of the Ragus embraced them all with affection and asked of their welfare. All is well with us, now that we have seen Your lotus feet.
English: The all-merciful Lord of the Ragus embraced them all with affection and asked of their welfare. All is well with us, now that we have seen Your lotus feet.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥
ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर॥1॥
ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर॥1॥
भावार्थ:-जाम्बवान् ने कहा- हे रघुनाथजी! सुनिए। हे नाथ! जिस पर आप दया करते हैं, उसे सदा कल्याण और निरंतर कुशल है। देवता, मनुष्य और मुनि सभी उस पर प्रसन्न रहते हैं॥1॥
English: Said Jamvant, Listen, O Lord of the Raghus: he on whom You bestow Your blessings is ever lucky and incessantly happy; gods, Hanuman beings and sages are all kind to him.
English: Said Jamvant, Listen, O Lord of the Raghus: he on whom You bestow Your blessings is ever lucky and incessantly happy; gods, Hanuman beings and sages are all kind to him.
* सोइ बिजई बिनई गुन सागर। तासु सुजसु त्रैलोक उजागर॥
प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू॥2॥
प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू॥2॥
भावार्थ:-वही विजयी है, वही विनयी है और वही गुणों का समुद्र बन जाता है। उसी का सुंदर यश तीनों लोकों में प्रकाशित होता है। प्रभु की कृपा से सब कार्य हुआ। आज हमारा जन्म सफल हो गया॥2॥
English: He alone is victorious, modest and an ocean of virtues; his fair renown shines brightly through all the three spheres of creation. Everything has turned out well by the grace of my Lord; it is only today that our birth has been consummated.
English: He alone is victorious, modest and an ocean of virtues; his fair renown shines brightly through all the three spheres of creation. Everything has turned out well by the grace of my Lord; it is only today that our birth has been consummated.
* नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी॥
पवनतनय के चरित सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए॥3॥
पवनतनय के चरित सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए॥3॥
भावार्थ:-हे नाथ! पवनपुत्र हनुमान् ने जो करनी की, उसका हजार मुखों से भी वर्णन नहीं किया जा सकता। तब जाम्बवान् ने हनुमान्जी के सुंदर चरित्र (कार्य) श्री रघुनाथजी को सुनाए॥3॥
English: The achievement of Hanuman(the son of the wind-god) cannot be described even with a thousand tongues. Jambvan then related to the Lord of the Raghus the charming exploits of Hanuman.
English: The achievement of Hanuman(the son of the wind-god) cannot be described even with a thousand tongues. Jambvan then related to the Lord of the Raghus the charming exploits of Hanuman.
* सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए॥
कहहु तात केहि भाँति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की॥4॥
कहहु तात केहि भाँति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की॥4॥
भावार्थ:-(वे चरित्र) सुनने पर कृपानिधि श्री रामचंदजी के मन को बहुत ही अच्छे लगे। उन्होंने हर्षित होकर हनुमान्जी को फिर हृदय से लगा लिया और कहा- हे तात! कहो, सीता किस प्रकार रहती और अपने प्राणों की रक्षा करती हैं?॥4॥
English: The All-merciful felt much delighted at heart to hear them and in His joy He clasped Hanuman once more to His bosom. Tell me, dear Hanuman, how does Janak's daughter pass her days and sustain her life?
English: The All-merciful felt much delighted at heart to hear them and in His joy He clasped Hanuman once more to His bosom. Tell me, dear Hanuman, how does Janak's daughter pass her days and sustain her life?
दोहा :
Doha:
Doha:
* नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥30॥
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट॥30॥
भावार्थ:-(हनुमान्जी ने कहा-) आपका नाम रात-दिन पहरा देने वाला है, आपका ध्यान ही किंवाड़ है। नेत्रों को अपने चरणों में लगाए रहती हैं, यही ताला लगा है, फिर प्राण जाएँ तो किस मार्ग से?॥30॥
English: Your Name keeps watch night and day, while Her continued thought of You acts as a pair of closed doors. She has Her eyes fastened on Her own feet; Her life thus finds no outlet whereby to escape.
English: Your Name keeps watch night and day, while Her continued thought of You acts as a pair of closed doors. She has Her eyes fastened on Her own feet; Her life thus finds no outlet whereby to escape.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* चलत मोहि चूड़ामनि दीन्हीं। रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही॥
नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी॥1॥
नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी॥1॥
भावार्थ:-चलते समय उन्होंने मुझे चूड़ामणि (उतारकर) दी। श्री रघुनाथजी ने उसे लेकर हृदय से लगा लिया। (हनुमान्जी ने फिर कहा-) हे नाथ! दोनों नेत्रों में जल भरकर जानकीजी ने मुझसे कुछ वचन कहे-॥1॥
English: When I was leaving, She gave me this jewel from the top of Her head. The Lord of the Raghus took it and pressed it to His bosom. My lord, with tears in both Her eyes Janak's Daughter uttered the following few words:
English: When I was leaving, She gave me this jewel from the top of Her head. The Lord of the Raghus took it and pressed it to His bosom. My lord, with tears in both Her eyes Janak's Daughter uttered the following few words:
* अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना॥
मन क्रम बचन चरन अनुरागी। केहिं अपराध नाथ हौं त्यागी॥2॥
मन क्रम बचन चरन अनुरागी। केहिं अपराध नाथ हौं त्यागी॥2॥
भावार्थ:-छोटे भाई समेत प्रभु के चरण पकड़ना (और कहना कि) आप दीनबंधु हैं, शरणागत के दुःखों को हरने वाले हैं और मैं मन, वचन और कर्म से आपके चरणों की अनुरागिणी हूँ। फिर स्वामी (आप) ने मुझे किस अपराध से त्याग दिया?॥2॥
English: Embrace the feet of my lord and His younger brother crying; O befriender of the distressed, reliever of the suppliants agony, I am devoted to Your feet in thought, word and deed; yet for what offence, my lord, have You forsaken me?
English: Embrace the feet of my lord and His younger brother crying; O befriender of the distressed, reliever of the suppliants agony, I am devoted to Your feet in thought, word and deed; yet for what offence, my lord, have You forsaken me?
* अवगुन एक मोर मैं माना। बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना॥
नाथ सो नयनन्हि को अपराधा। निसरत प्रान करहिं हठि बाधा॥3॥
नाथ सो नयनन्हि को अपराधा। निसरत प्रान करहिं हठि बाधा॥3॥
भावार्थ:-(हाँ) एक दोष मैं अपना (अवश्य) मानती हूँ कि आपका वियोग होते ही मेरे प्राण नहीं चले गए, किंतु हे नाथ! यह तो नेत्रों का अपराध है जो प्राणों के निकलने में हठपूर्वक बाधा देते हैं॥3॥
English: I do admit one fault of mine, that my life did not depart the moment I was separated from You.That, however, my lord, is the fault of my eyes, which forcibly prevent my life from escaping.
English: I do admit one fault of mine, that my life did not depart the moment I was separated from You.That, however, my lord, is the fault of my eyes, which forcibly prevent my life from escaping.
* बिरह अगिनि तनु तूल समीरा। स्वास जरइ छन माहिं सरीरा॥
नयन स्रवहिं जलु निज हित लागी। जरैं न पाव देह बिरहागी॥4॥
नयन स्रवहिं जलु निज हित लागी। जरैं न पाव देह बिरहागी॥4॥
भावार्थ:-विरह अग्नि है, शरीर रूई है और श्वास पवन है, इस प्रकार (अग्नि और पवन का संयोग होने से) यह शरीर क्षणमात्र में जल सकता है, परंतु नेत्र अपने हित के लिए प्रभु का स्वरूप देखकर (सुखी होने के लिए) जल (आँसू) बरसाते हैं, जिससे विरह की आग से भी देह जलने नहीं पाती॥4॥
English: The agony of separation from You is like fire, my sighs fan it as a gust of wind and in between stands my body like a heap of cotton, which would have been consumed in an instant. But my eyes, in their own interest (i.e., for being enabled to feast themselves on Your beauty) rain a flood of tears; that is why the body fails to catch the fire of desolation.
English: The agony of separation from You is like fire, my sighs fan it as a gust of wind and in between stands my body like a heap of cotton, which would have been consumed in an instant. But my eyes, in their own interest (i.e., for being enabled to feast themselves on Your beauty) rain a flood of tears; that is why the body fails to catch the fire of desolation.
* सीता कै अति बिपति बिसाला। बिनहिं कहें भलि दीनदयाला॥5॥
भावार्थ:-सीताजी की विपत्ति बहुत बड़ी है। हे दीनदयालु! वह बिना कही ही अच्छी है (कहने से आपको बड़ा क्लेश होगा)॥5॥
English: Sita's distress is so overwhelmingly great, and You are so compassionate to the afflicted, that it is better not to describe it.
English: Sita's distress is so overwhelmingly great, and You are so compassionate to the afflicted, that it is better not to describe it.
दोहा :
Doha:
Doha:
* निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति।
बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति॥31॥
बेगि चलिअ प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति॥31॥
भावार्थ:-हे करुणानिधान! उनका एक-एक पल कल्प के समान बीतता है। अतः हे प्रभु! तुरंत चलिए और अपनी भुजाओं के बल से दुष्टों के दल को जीतकर सीताजी को ले आइए॥31॥
English: Each single moment, O fountain of mercy, passes like an age to Her. Therefore, march quickly, my lord, and vanquishing the miscreant crew by Your mighty arm, recover Her.
English: Each single moment, O fountain of mercy, passes like an age to Her. Therefore, march quickly, my lord, and vanquishing the miscreant crew by Your mighty arm, recover Her.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना॥
बचन कायँ मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही॥1॥
बचन कायँ मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही॥1॥
भावार्थ:-सीताजी का दुःख सुनकर सुख के धाम प्रभु के कमल नेत्रों में जल भर आया (और वे बोले-) मन, वचन और शरीर से जिसे मेरी ही गति (मेरा ही आश्रय) है, उसे क्या स्वप्न में भी विपत्ति हो सकती है?॥1॥
English: When the all-blissful Lord heard of Sita's agony, tears rushed to his lotus eyes. Do you think anyone who depends on me in thought, word and deed can ever dream of adversity?
English: When the all-blissful Lord heard of Sita's agony, tears rushed to his lotus eyes. Do you think anyone who depends on me in thought, word and deed can ever dream of adversity?
* कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई॥
केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी॥2॥
केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी॥2॥
भावार्थ:-हनुमान्जी ने कहा- हे प्रभु! विपत्ति तो वही (तभी) है जब आपका भजन-स्मरण न हो। हे प्रभो! राक्षसों की बात ही कितनी है? आप शत्रु को जीतकर जानकीजी को ले आवेंगे॥2॥
English: Said Hanuman: There is no misfortune other than ceasing to remember and adore You. Of what account are the demons to You? Routing the enemy You will surely bring back Janak's Daughter.
English: Said Hanuman: There is no misfortune other than ceasing to remember and adore You. Of what account are the demons to You? Routing the enemy You will surely bring back Janak's Daughter.
* सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी॥
प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥3॥
प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥3॥
भावार्थ:-(भगवान् कहने लगे-) हे हनुमान्! सुन, तेरे समान मेरा उपकारी देवता, मनुष्य अथवा मुनि कोई भी शरीरधारी नहीं है। मैं तेरा प्रत्युपकार (बदले में उपकार) तो क्या करूँ, मेरा मन भी तेरे सामने नहीं हो सकता॥3॥
English: No one endowed with a bodya god, Hanuman being or sagehas put me under such obligation, Hanuman, as you have done. Even my mind shrinks to face you; how, then, can I repay your obligation?
English: No one endowed with a bodya god, Hanuman being or sagehas put me under such obligation, Hanuman, as you have done. Even my mind shrinks to face you; how, then, can I repay your obligation?
* सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं॥
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता॥4॥
पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता॥4॥
भावार्थ:-हे पुत्र! सुन, मैंने मन में (खूब) विचार करके देख लिया कि मैं तुझसे उऋण नहीं हो सकता। देवताओं के रक्षक प्रभु बार-बार हनुमान्जी को देख रहे हैं। नेत्रों में प्रेमाश्रुओं का जल भरा है और शरीर अत्यंत पुलकित है॥4॥
English: Listen, my son: I have thought over the question and concluded that the debt which I owe you cannot be repaid. Again and again as the Protector of the gods gazed on Hanuman His eyes filled with tears and His body was overpowered with a thrill of emotion.
English: Listen, my son: I have thought over the question and concluded that the debt which I owe you cannot be repaid. Again and again as the Protector of the gods gazed on Hanuman His eyes filled with tears and His body was overpowered with a thrill of emotion.
दोहा :
Doha:
Doha:
* सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत॥32॥
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत॥32॥
भावार्थ:-प्रभु के वचन सुनकर और उनके (प्रसन्न) मुख तथा (पुलकित) अंगों को देखकर हनुमान्जी हर्षित हो गए और प्रेम में विकल होकर 'हे भगवन्! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो' कहते हुए श्री रामजी के चरणों में गिर पड़े॥32॥
English: Even as Hanuman listened to the words of his lord and gazed on His countenance he experienced a thrill of joy all over his body and fell at His feet, overwhelmed with love and crying: Save me, save me (from the tentacles of egoism), my lord.
English: Even as Hanuman listened to the words of his lord and gazed on His countenance he experienced a thrill of joy all over his body and fell at His feet, overwhelmed with love and crying: Save me, save me (from the tentacles of egoism), my lord.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा॥
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥1॥
प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा॥1॥
भावार्थ:-प्रभु उनको बार-बार उठाना चाहते हैं, परंतु प्रेम में डूबे हुए हनुमान्जी को चरणों से उठना सुहाता नहीं। प्रभु का करकमल हनुमान्जी के सिर पर है। उस स्थिति का स्मरण करके शिवजी प्रेममग्न हो गए॥1॥
English: Again and again the Lord sought to raise him up; he, however, was so absorbed in love that he would not rise. The lotus hand of the Lord rested on his head. Gauri lord (Shiv) was overcome with emotion as He called to mind Hanuman's enviable lot.
English: Again and again the Lord sought to raise him up; he, however, was so absorbed in love that he would not rise. The lotus hand of the Lord rested on his head. Gauri lord (Shiv) was overcome with emotion as He called to mind Hanuman's enviable lot.
* सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर॥
कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा॥2॥
कपि उठाई प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा॥2॥
भावार्थ:-फिर मन को सावधान करके शंकरजी अत्यंत सुंदर कथा कहने लगे- हनुमान्जी को उठाकर प्रभु ने हृदय से लगाया और हाथ पकड़कर अत्यंत निकट बैठा लिया॥2॥
English: But, recovering Himself, Shiv resumed the most charming narrative. The Lord lifted up Hanuman and clasped him to His bosom; then He took him by the hand and seated him very close to Him.
English: But, recovering Himself, Shiv resumed the most charming narrative. The Lord lifted up Hanuman and clasped him to His bosom; then He took him by the hand and seated him very close to Him.
* कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना॥3॥
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना॥3॥
भावार्थ:-हे हनुमान्! बताओ तो, रावण के द्वारा सुरक्षित लंका और उसके बड़े बाँके किले को तुमने किस तरह जलाया? हनुमान्जी ने प्रभु को प्रसन्न जाना और वे अभिमानरहित वचन बोले- ॥3॥
English: Tell me, Hanuman, how could you burn Ravan's stronghold of Lanka, a most impregnable fortress? When Hanuman found the Lord so pleased, he replied in words altogether free from pride.
English: Tell me, Hanuman, how could you burn Ravan's stronghold of Lanka, a most impregnable fortress? When Hanuman found the Lord so pleased, he replied in words altogether free from pride.
* साखामग कै बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई॥
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बधि बिपिन उजारा॥4॥
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बधि बिपिन उजारा॥4॥
भावार्थ:-बंदर का बस, यही बड़ा पुरुषार्थ है कि वह एक डाल से दूसरी डाल पर चला जाता है। मैंने जो समुद्र लाँघकर सोने का नगर जलाया और राक्षसगण को मारकर अशोक वन को उजाड़ डाला,॥4॥
English: A monkeys greatest valour lies in his skipping about from one bough to another. That I should have been able to leap across the ocean, burn the gold city, kill the demon host and lay waste the Ashok grove
English: A monkeys greatest valour lies in his skipping about from one bough to another. That I should have been able to leap across the ocean, burn the gold city, kill the demon host and lay waste the Ashok grove
* सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥5॥
भावार्थ:-यह सब तो हे श्री रघुनाथजी! आप ही का प्रताप है। हे नाथ! इसमें मेरी प्रभुता (बड़ाई) कुछ भी नहीं है॥5॥
English: was all due to Your might; no credit, my lord, is due to me for the same.
English: was all due to Your might; no credit, my lord, is due to me for the same.
दोहा :
Doha:
Doha:
* ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकूल।
तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल॥33॥
तव प्रभावँ बड़वानलहि जारि सकइ खलु तूल॥33॥
भावार्थ:-हे प्रभु! जिस पर आप प्रसन्न हों, उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है। आपके प्रभाव से रूई (जो स्वयं बहुत जल्दी जल जाने वाली वस्तु है) बड़वानल को निश्चय ही जला सकती है (अर्थात् असंभव भी संभव हो सकता है)॥3॥
English: Nothing is unattainable, my lord, to him who enjoys Your grace. Through Your might a mere shred of cotton can surely burn a submarine fire (the impossible can be made possible).
English: Nothing is unattainable, my lord, to him who enjoys Your grace. Through Your might a mere shred of cotton can surely burn a submarine fire (the impossible can be made possible).
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी॥
सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥1॥
सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी॥1॥
भावार्थ:-हे नाथ! मुझे अत्यंत सुख देने वाली अपनी निश्चल भक्ति कृपा करके दीजिए। हनुमान्जी की अत्यंत सरल वाणी सुनकर, हे भवानी! तब प्रभु श्री रामचंद्रजी ने 'एवमस्तु' (ऐसा ही हो) कहा॥1॥
English: Therefore, be pleased, my lord, to grant me unceasing Devotion, which is a source of supreme bliss. When the Lord, O Parvati, heard the most artless speech of Hanuman He said, Be it so!
English: Therefore, be pleased, my lord, to grant me unceasing Devotion, which is a source of supreme bliss. When the Lord, O Parvati, heard the most artless speech of Hanuman He said, Be it so!
* उमा राम सुभाउ जेहिं जाना। ताहि भजनु तजि भाव न आना॥
यह संबाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥2॥
यह संबाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥2॥
भावार्थ:-हे उमा! जिसने श्री रामजी का स्वभाव जान लिया, उसे भजन छोड़कर दूसरी बात ही नहीं सुहाती। यह स्वामी-सेवक का संवाद जिसके हृदय में आ गया, वही श्री रघुनाथजी के चरणों की भक्ति पा गया॥2॥
English: Uma, he who has come to know the true nature of Ram can have no relish for anything other than His worship. Even he who takes this dialogue (between Shri Ram and Hanuman) to heart is blessed with devotion to Shri Ram's feet.
English: Uma, he who has come to know the true nature of Ram can have no relish for anything other than His worship. Even he who takes this dialogue (between Shri Ram and Hanuman) to heart is blessed with devotion to Shri Ram's feet.
* सुनि प्रभु बचन कहहिं कपि बृंदा। जय जय जय कृपाल सुखकंदा॥
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा। कहा चलैं कर करहु बनावा॥3॥
तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा। कहा चलैं कर करहु बनावा॥3॥
भावार्थ:-प्रभु के वचन सुनकर वानरगण कहने लगे- कृपालु आनंदकंद श्री रामजी की जय हो जय हो, जय हो! तब श्री रघुनाथजी ने कपिराज सुग्रीव को बुलाया और कहा- चलने की तैयारी करो॥3॥
English: On hearing the words of the Lord the whole host of monkeys cried, Glory, glory, all glory to the gracious Lord, the fountain of bliss ! The Lord of the Raghus then summoned Sugriv (the King of the monkeys) and said, Make preparations for the march.
English: On hearing the words of the Lord the whole host of monkeys cried, Glory, glory, all glory to the gracious Lord, the fountain of bliss ! The Lord of the Raghus then summoned Sugriv (the King of the monkeys) and said, Make preparations for the march.
*अब बिलंबु केह कारन कीजे। तुरंत कपिन्ह कहँ आयसु दीजे॥
कौतुक देखि सुमन बहु बरषी। नभ तें भवन चले सुर हरषी॥4॥
कौतुक देखि सुमन बहु बरषी। नभ तें भवन चले सुर हरषी॥4॥
भावार्थ:-अब विलंब किस कारण किया जाए। वानरों को तुरंत आज्ञा दो। (भगवान् की) यह लीला (रावणवध की तैयारी) देखकर, बहुत से फूल बरसाकर और हर्षित होकर देवता आकाश से अपने-अपने लोक को चले॥4॥
English: Why should we tarry any longer? Issue orders to the monkeys at once. The gods who were witnessing the spectacle rained down flowers in profusion and then gladly withdrew from the lower air to their own celestial spheres.