दोहा :
Doha:
Doha:
* रामु सत्यसंकल्प प्रभु सभा कालबस तोरि।
मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि॥41॥
मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु जनि खोरि॥41॥
भावार्थ:-श्री रामजी सत्य संकल्प एवं (सर्वसमर्थ) प्रभु हैं और (हे रावण) तुम्हारी सभा काल के वश है। अतः मैं अब श्री रघुवीर की शरण जाता हूँ, मुझे दोष न देना॥41||
English: Shri Ram is true to His resolve and all-powerful; while your councillors are all doomed. I, therefore, now betake myself to the Hero of Raghus line for protection; blame me no more.
English: Shri Ram is true to His resolve and all-powerful; while your councillors are all doomed. I, therefore, now betake myself to the Hero of Raghus line for protection; blame me no more.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* अस कहि चला बिभीषनु जबहीं। आयू हीन भए सब तबहीं॥
साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी॥1॥
साधु अवग्या तुरत भवानी। कर कल्यान अखिल कै हानी॥1॥
भावार्थ:-ऐसा कहकर विभीषणजी ज्यों ही चले, त्यों ही सब राक्षस आयुहीन हो गए। (उनकी मृत्यु निश्चित हो गई)। (शिवजी कहते हैं-) हे भवानी! साधु का अपमान तुरंत ही संपूर्ण कल्याण की हानि (नाश) कर देता है॥1||
English: No sooner had Vibhishan left with these words than the doom of them all was sealed. Disrespect to a saint, Parvati, immediately robs one of all blessings.
English: No sooner had Vibhishan left with these words than the doom of them all was sealed. Disrespect to a saint, Parvati, immediately robs one of all blessings.
* रावन जबहिं बिभीषन त्यागा। भयउ बिभव बिनु तबहिं अभागा॥
चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं। करत मनोरथ बहु मन माहीं॥2॥
चलेउ हरषि रघुनायक पाहीं। करत मनोरथ बहु मन माहीं॥2॥
भावार्थ:-रावण ने जिस क्षण विभीषण को त्यागा, उसी क्षण वह अभागा वैभव (ऐश्वर्य) से हीन हो गया। विभीषणजी हर्षित होकर मन में अनेकों मनोरथ करते हुए श्री रघुनाथजी के पास चले॥2||
English: The moment Ravana abandoned Vibhishana the wretch lost all his glory. Indulging in many expectations Vibhishana, however, gladly proceeded to the Lord of the Raghus.
English: The moment Ravana abandoned Vibhishana the wretch lost all his glory. Indulging in many expectations Vibhishana, however, gladly proceeded to the Lord of the Raghus.
* देखिहउँ जाइ चरन जलजाता। अरुन मृदुल सेवक सुखदाता॥
जे पद परसि तरी रिषनारी। दंडक कानन पावनकारी॥3॥
जे पद परसि तरी रिषनारी। दंडक कानन पावनकारी॥3॥
भावार्थ:-(वे सोचते जाते थे-) मैं जाकर भगवान् के कोमल और लाल वर्ण के सुंदर चरण कमलों के दर्शन करूँगा, जो सेवकों को सुख देने वाले हैं, जिन चरणों का स्पर्श पाकर ऋषि पत्नी अहल्या तर गईं और जो दंडकवन को पवित्र करने वाले हैं॥3||
English: Vibhishana, however, gladly proceeded to the Lord of the Raghus. On reaching there I will behold those lotus-feet with ruddy soles, so soft and so delightful to the devotees. Nay, I will behold those feet whose very touch redeemed the Rsi`s wife (Ahaly), that hallowed the Dandaka forest,
English: Vibhishana, however, gladly proceeded to the Lord of the Raghus. On reaching there I will behold those lotus-feet with ruddy soles, so soft and so delightful to the devotees. Nay, I will behold those feet whose very touch redeemed the Rsi`s wife (Ahaly), that hallowed the Dandaka forest,
* जे पद जनकसुताँ उर लाए। कपट कुरंग संग धर धाए॥
हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभाग्य मैं देखिहउँ तेई॥4॥
हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभाग्य मैं देखिहउँ तेई॥4॥
भावार्थ:-जिन चरणों को जानकीजी ने हृदय में धारण कर रखा है, जो कपटमृग के साथ पृथ्वी पर (उसे पकड़ने को) दौड़े थे और जो चरणकमल साक्षात् शिवजी के हृदय रूपी सरोवर में विराजते हैं, मेरा अहोभाग्य है कि उन्हीं को आज मैं देखूँगा॥4||
English: that Janakas Daughter has locked up in Her bosom, that chased the delusive deer and that dwell as a pair of lotuses in the lake of Shiva`s heart. I am really blessed that I am going to see those very feet.
English: that Janakas Daughter has locked up in Her bosom, that chased the delusive deer and that dwell as a pair of lotuses in the lake of Shiva`s heart. I am really blessed that I am going to see those very feet.
दोहा :
Doha:
Doha:
* जिन्ह पायन्ह के पादुकन्हि भरतु रहे मन लाइ।
ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ॥42॥
ते पद आजु बिलोकिहउँ इन्ह नयनन्हि अब जाइ॥42॥
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* ऐहि बिधि करत सप्रेम बिचारा। आयउ सपदि सिंदु एहिं पारा॥
कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा। जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा॥1॥
कपिन्ह बिभीषनु आवत देखा। जाना कोउ रिपु दूत बिसेषा॥1॥
भावार्थ:-इस प्रकार प्रेमसहित विचार करते हुए वे शीघ्र ही समुद्र के इस पार (जिधर श्री रामचंद्रजी की सेना थी) आ गए। वानरों ने विभीषण को आते देखा तो उन्होंने जाना कि शत्रु का कोई खास दूत है॥1||
English: Cherishing such fond expectations Vibhishana instantly crossed over to the other side of the ocean (where Shri Ram had encamped with His host). When the monkeys saw Vibhishana coming, they took him for some special messenger of the enemy.
English: Cherishing such fond expectations Vibhishana instantly crossed over to the other side of the ocean (where Shri Ram had encamped with His host). When the monkeys saw Vibhishana coming, they took him for some special messenger of the enemy.
* ताहि राखि कपीस पहिं आए। समाचार सब ताहि सुनाए॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। आवा मिलन दसानन भाई॥2॥
कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। आवा मिलन दसानन भाई॥2॥
भावार्थ:-उन्हें (पहरे पर) ठहराकर वे सुग्रीव के पास आए और उनको सब समाचार कह सुनाए। सुग्रीव ने (श्री रामजी के पास जाकर) कहा- हे रघुनाथजी! सुनिए, रावण का भाई (आप से) मिलने आया है॥2||
English: Detaining him outside they approached Sugriva(the lord of the monkeys) and told him all the news. Said Sugriva, Listen, O Lord of the Raghus: Ravana`s brother (Vibhishana) has come to see You.
English: Detaining him outside they approached Sugriva(the lord of the monkeys) and told him all the news. Said Sugriva, Listen, O Lord of the Raghus: Ravana`s brother (Vibhishana) has come to see You.
* कह प्रभु सखा बूझिए काहा। कहइ कपीस सुनहु नरनाहा॥
जानि न जाइ निसाचर माया। कामरूप केहि कारन आया॥3॥
जानि न जाइ निसाचर माया। कामरूप केहि कारन आया॥3॥
भावार्थ:-प्रभु श्री रामजी ने कहा- हे मित्र! तुम क्या समझते हो (तुम्हारी क्या राय है)? वानरराज सुग्रीव ने कहा- हे महाराज! सुनिए, राक्षसों की माया जानी नहीं जाती। यह इच्छानुसार रूप बदलने वाला (छली) न जाने किस कारण आया है॥3||
English: The Lord, however, asked, What do you think of the matter, my friend? The lord of the monkeys replied, Listen, O Ruler of men: the wiles of these demons are beyond ones comprehension. One does not know wherefore he has come, capable as he is of taking any form he likes.
English: The Lord, however, asked, What do you think of the matter, my friend? The lord of the monkeys replied, Listen, O Ruler of men: the wiles of these demons are beyond ones comprehension. One does not know wherefore he has come, capable as he is of taking any form he likes.
* भेद हमार लेन सठ आवा। राखिअ बाँधि मोहि अस भावा॥
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥4॥
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥4॥
भावार्थ:-(जान पड़ता है) यह मूर्ख हमारा भेद लेने आया है, इसलिए मुझे तो यही अच्छा लगता है कि इसे बाँध रखा जाए। (श्री रामजी ने कहा-) हे मित्र! तुमने नीति तो अच्छी विचारी, परंतु मेरा प्रण तो है शरणागत के भय को हर लेना!॥4||
* सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना। सरनागत बच्छल भगवाना॥5॥
भावार्थ:-प्रभु के वचन सुनकर हनुमान्जी हर्षित हुए (और मन ही मन कहने लगे कि) भगवान् कैसे शरणागतवत्सल (शरण में आए हुए पर पिता की भाँति प्रेम करने वाले) हैं॥5||
English: Hanuman rejoiced to hear these words of the Lord, who cherished paternal affection for His protege.
English: Hanuman rejoiced to hear these words of the Lord, who cherished paternal affection for His protege.
दोहा :
Doha:
Doha:
* सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि॥43॥
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि॥43॥
भावार्थ:-(श्री रामजी फिर बोले-) जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आए हुए का त्याग कर देते हैं, वे पामर (क्षुद्र) हैं, पापमय हैं, उन्हें देखने में भी हानि है (पाप लगता है)॥43||
English: Those people who forsake a suppliant, apprehending evil from him are vile and sinful; their very sight is abominable.
English: Those people who forsake a suppliant, apprehending evil from him are vile and sinful; their very sight is abominable.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू॥
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥1॥
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥1॥
भावार्थ:-जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी हो, शरण में आने पर मैं उसे भी नहीं त्यागता। जीव ज्यों ही मेरे सम्मुख होता है, त्यों ही उसके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं॥1||
English: I will not abandon even the murderer of myriads of Brahmanas, if he seeks refuge in Me. The moment a creature turns its face towards Me the sins incurred by it through millions of lives are washed away.
English: I will not abandon even the murderer of myriads of Brahmanas, if he seeks refuge in Me. The moment a creature turns its face towards Me the sins incurred by it through millions of lives are washed away.
* पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ॥
जौं पै दुष्ट हृदय सोइ होई। मोरें सनमुख आव कि सोई॥2॥
जौं पै दुष्ट हृदय सोइ होई। मोरें सनमुख आव कि सोई॥2॥
भावार्थ:-पापी का यह सहज स्वभाव होता है कि मेरा भजन उसे कभी नहीं सुहाता। यदि वह (रावण का भाई) निश्चय ही दुष्ट हृदय का होता तो क्या वह मेरे सम्मुख आ सकता था?॥2||
English: A sinner by his very nature is averse to My worship. Had Vibhishana been wicked at heart, could he ever dare to approach Me?
English: A sinner by his very nature is averse to My worship. Had Vibhishana been wicked at heart, could he ever dare to approach Me?
* निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥
भेद लेन पठवा दससीसा। तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा॥3॥
भेद लेन पठवा दससीसा। तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा॥3॥
भावार्थ:-जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते। यदि उसे रावण ने भेद लेने को भेजा है, तब भी हे सुग्रीव! अपने को कुछ भी भय या हानि नहीं है॥3||
English: That man alone who has a pure mind can attain to Me; I have an aversion for duplicity, wiles and censoriousness. Even if Ravana has sent him to find out our secrets, we have nothing to fear or lose, O lord of the monkeys. Sugreev,
English: That man alone who has a pure mind can attain to Me; I have an aversion for duplicity, wiles and censoriousness. Even if Ravana has sent him to find out our secrets, we have nothing to fear or lose, O lord of the monkeys. Sugreev,
* जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते॥
जौं सभीत आवा सरनाईं। रखिहउँ ताहि प्रान की नाईं॥4॥
जौं सभीत आवा सरनाईं। रखिहउँ ताहि प्रान की नाईं॥4॥
भावार्थ:-क्योंकि हे सखे! जगत में जितने भी राक्षस हैं, लक्ष्मण क्षणभर में उन सबको मार सकते हैं और यदि वह भयभीत होकर मेरी शरण आया है तो मैं तो उसे प्राणों की तरह रखूँगा॥4||
English: O my friend, can dispose of in a trice all the demons the world contains. And if he has sought shelter with Me out of fear, I will cherish him as My own life.
English: O my friend, can dispose of in a trice all the demons the world contains. And if he has sought shelter with Me out of fear, I will cherish him as My own life.
दोहा :
Doha:
Doha:
* उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।
जय कृपाल कहि कपि चले अंगद हनू समेत॥44॥
जय कृपाल कहि कपि चले अंगद हनू समेत॥44॥
भावार्थ:-कृपा के धाम श्री रामजी ने हँसकर कहा- दोनों ही स्थितियों में उसे ले आओ। तब अंगद और हनुमान् सहित सुग्रीवजी 'कपालु श्री रामजी की जय हो' कहते हुए चले॥4||
English: In either case bring him here, the All-merciful laughed and said. Glory to the merciful Lord, cried the monkeys and proceeded with Angad and Hanuman (to usher in Vibhishana).
English: In either case bring him here, the All-merciful laughed and said. Glory to the merciful Lord, cried the monkeys and proceeded with Angad and Hanuman (to usher in Vibhishana).
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* सादर तेहि आगें करि बानर। चले जहाँ रघुपति करुनाकर॥
दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता। नयनानंद दान के दाता॥1॥
दूरिहि ते देखे द्वौ भ्राता। नयनानंद दान के दाता॥1॥
भावार्थ:-विभीषणजी को आदर सहित आगे करके वानर फिर वहाँ चले, जहाँ करुणा की खान श्री रघुनाथजी थे। नेत्रों को आनंद का दान देने वाले (अत्यंत सुखद) दोनों भाइयों को विभीषणजी ने दूर ही से देखा॥1||
English: The monkeys respectfully placed Vibhishan ahead of them and proceeded to the place where the all-merciful Lord of the Raghus was. Vibhishan beheld from a distance the two brothers who ravished the eyes of all. Again as he beheld Shri Ram, the home
English: The monkeys respectfully placed Vibhishan ahead of them and proceeded to the place where the all-merciful Lord of the Raghus was. Vibhishan beheld from a distance the two brothers who ravished the eyes of all. Again as he beheld Shri Ram, the home
* बहुरि राम छबिधाम बिलोकी। रहेउ ठटुकि एकटक पल रोकी॥
भुज प्रलंब कंजारुन लोचन। स्यामल गात प्रनत भय मोचन॥2॥
भुज प्रलंब कंजारुन लोचन। स्यामल गात प्रनत भय मोचन॥2॥
भावार्थ:-फिर शोभा के धाम श्री रामजी को देखकर वे पलक (मारना) रोककर ठिठककर (स्तब्ध होकर) एकटक देखते ही रह गए। भगवान् की विशाल भुजाएँ हैं लाल कमल के समान नेत्र हैं और शरणागत के भय का नाश करने वाला साँवला शरीर है॥2||
English: Again as he beheld Shri Ram, the home of beauty, he stopped winking and stood stockstill with his gaze intently fixed on the Lord. He had exceptionally long arms, eyes resembling the red lotus and swarthy limbs that rid the suppliant of all fear.
English: Again as he beheld Shri Ram, the home of beauty, he stopped winking and stood stockstill with his gaze intently fixed on the Lord. He had exceptionally long arms, eyes resembling the red lotus and swarthy limbs that rid the suppliant of all fear.
* सघ कंध आयत उर सोहा। आनन अमित मदन मन मोहा॥
नयन नीर पुलकित अति गाता। मन धरि धीर कही मृदु बाता॥3॥
नयन नीर पुलकित अति गाता। मन धरि धीर कही मृदु बाता॥3॥
भावार्थ:-सिंह के से कंधे हैं, विशाल वक्षःस्थल (चौड़ी छाती) अत्यंत शोभा दे रहा है। असंख्य कामदेवों के मन को मोहित करने वाला मुख है। भगवान् के स्वरूप को देखकर विभीषणजी के नेत्रों में (प्रेमाश्रुओं का) जल भर आया और शरीर अत्यंत पुलकित हो गया। फिर मन में धीरज धरकर उन्होंने कोमल वचन कहे॥3||
English: His lion-like shoulders and broad chest exercised great charm, while His countenance bewitched the mind of countless Cupids. The sight brought tears to his eyes and a deep thrill ran through his body. He, however, composed his mind and spoke in gentle accents:
English: His lion-like shoulders and broad chest exercised great charm, while His countenance bewitched the mind of countless Cupids. The sight brought tears to his eyes and a deep thrill ran through his body. He, however, composed his mind and spoke in gentle accents:
* नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता॥
सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा॥4॥
सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा॥4॥
भावार्थ:-हे नाथ! मैं दशमुख रावण का भाई हूँ। हे देवताओं के रक्षक! मेरा जन्म राक्षस कुल में हुआ है। मेरा तामसी शरीर है, स्वभाव से ही मुझे पाप प्रिय हैं, जैसे उल्लू को अंधकार पर सहज स्नेह होता है॥4||
English: My lord, I am Ravan`s brother. Having been born in the demon race. O Protector of gods, my body has the element of Tmas (inertia and ignorance) preponderating in it and I have a natural affinity for sins even as an owl is fond of darkness.
English: My lord, I am Ravan`s brother. Having been born in the demon race. O Protector of gods, my body has the element of Tmas (inertia and ignorance) preponderating in it and I have a natural affinity for sins even as an owl is fond of darkness.
दोहा :
Doha:
Doha:
* श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर॥45॥
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर॥45॥
भावार्थ:-मैं कानों से आपका सुयश सुनकर आया हूँ कि प्रभु भव (जन्म-मरण) के भय का नाश करने वाले हैं। हे दुखियों के दुःख दूर करने वाले और शरणागत को सुख देने वाले श्री रघुवीर! मेरी रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए॥45||
English: Having heard with my own ears of Your fair renown I have come to You with the belief that my lord (You) dissipates the fear of rebirth. Save me, save me, O Hero of Raghus line, reliever of distress, delighter of those who take refuge in you.
English: Having heard with my own ears of Your fair renown I have come to You with the belief that my lord (You) dissipates the fear of rebirth. Save me, save me, O Hero of Raghus line, reliever of distress, delighter of those who take refuge in you.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा॥
दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा॥1॥
दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा॥1॥
भावार्थ:-प्रभु ने उन्हें ऐसा कहकर दंडवत् करते देखा तो वे अत्यंत हर्षित होकर तुरंत उठे। विभीषणजी के दीन वचन सुनने पर प्रभु के मन को बहुत ही भाए। उन्होंने अपनी विशाल भुजाओं से पकड़कर उनको हृदय से लगा लिया॥1||
English: When the Lord saw Vibhishan falling prostrate with these words, He immediately started up much delighted. The Lord rejoiced at heart to hear his humble speech and, taking him in His long arms, clasped him to His bosom.
English: When the Lord saw Vibhishan falling prostrate with these words, He immediately started up much delighted. The Lord rejoiced at heart to hear his humble speech and, taking him in His long arms, clasped him to His bosom.
* अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी। बोले बचन भगत भय हारी॥
कहु लंकेस सहित परिवारा। कुसल कुठाहर बास तुम्हारा॥2॥
कहु लंकेस सहित परिवारा। कुसल कुठाहर बास तुम्हारा॥2॥
भावार्थ:-छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित गले मिलकर उनको अपने पास बैठाकर श्री रामजी भक्तों के भय को हरने वाले वचन बोले- हे लंकेश! परिवार सहित अपनी कुशल कहो। तुम्हारा निवास बुरी जगह पर है॥2||
English: Meeting him with His younger brother (Lankshaman) He seated him by His side and spoke words that dispelled the fear of His devotee: Tell me, king of Lanka, if all is well with you and your family, placed as you are in vicious surroundings.
English: Meeting him with His younger brother (Lankshaman) He seated him by His side and spoke words that dispelled the fear of His devotee: Tell me, king of Lanka, if all is well with you and your family, placed as you are in vicious surroundings.
* खल मंडली बसहु दिनु राती। सखा धरम निबहइ केहि भाँती॥
मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती। अति नय निपुन न भाव अनीती॥3॥
मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती। अति नय निपुन न भाव अनीती॥3॥
भावार्थ:-दिन-रात दुष्टों की मंडली में बसते हो। (ऐसी दशा में) हे सखे! तुम्हारा धर्म किस प्रकार निभता है? मैं तुम्हारी सब रीति (आचार-व्यवहार) जानता हूँ। तुम अत्यंत नीतिनिपुण हो, तुम्हें अनीति नहीं सुहाती॥3||
English: You live day and night in the midst of evil-minded persons; I wonder how you are able to maintain your piety, my friend, I know all your ways: you are a past master in correct behaviour and are averse to wrong-doing.
English: You live day and night in the midst of evil-minded persons; I wonder how you are able to maintain your piety, my friend, I know all your ways: you are a past master in correct behaviour and are averse to wrong-doing.
* बरु भल बास नरक कर ताता। दुष्ट संग जनि देइ बिधाता॥
अब पद देखि कुसल रघुराया। जौं तुम्ह कीन्हि जानि जन दाया॥4॥
अब पद देखि कुसल रघुराया। जौं तुम्ह कीन्हि जानि जन दाया॥4॥
भावार्थ:-हे तात! नरक में रहना वरन् अच्छा है, परंतु विधाता दुष्ट का संग (कभी) न दे। (विभीषणजी ने कहा-) हे रघुनाथजी! अब आपके चरणों का दर्शन कर कुशल से हूँ, जो आपने अपना सेवक जानकर मुझ पर दया की है॥4||
English: it is much better to live in hell, dear Vibhsishan; but may Providence never place us in the company of the wicked. All is well with me now that I have beheld Your feet, O Lord of the Raghus, and since You have shown Your mercy to me, recognizing me as Your servant.
English: it is much better to live in hell, dear Vibhsishan; but may Providence never place us in the company of the wicked. All is well with me now that I have beheld Your feet, O Lord of the Raghus, and since You have shown Your mercy to me, recognizing me as Your servant.
दोहा :
Doha:
Doha:
* तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।
जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम॥46॥
जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम॥46॥
भावार्थ:-तब तक जीव की कुशल नहीं और न स्वप्न में भी उसके मन को शांति है, जब तक वह शोक के घर काम (विषय-कामना) को छोड़कर श्री रामजी को नहीं भजता॥46||
English: There can be no happiness for a creature nor can its mind know any peace even in a dream so long as it does not relinquish desire, which is an abode of sorrow, and adore Shri Ram(Yourself).
English: There can be no happiness for a creature nor can its mind know any peace even in a dream so long as it does not relinquish desire, which is an abode of sorrow, and adore Shri Ram(Yourself).
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* तब लगि हृदयँ बसत खल नाना। लोभ मोह मच्छर मद माना॥
जब लगि उर न बसत रघुनाथा। धरें चाप सायक कटि भाथा॥1॥
जब लगि उर न बसत रघुनाथा। धरें चाप सायक कटि भाथा॥1॥
भावार्थ:-लोभ, मोह, मत्सर (डाह), मद और मान आदि अनेकों दुष्ट तभी तक हृदय में बसते हैं, जब तक कि धनुष-बाण और कमर में तरकस धारण किए हुए श्री रघुनाथजी हृदय में नहीं बसते॥1||
English: That villainous crewgreed, infatuation, jealousy, arrogance and pride haunts the mind only so long as the Lord of the Raghus does not take up His abode there, armed with a bow and arrow and with a quiver fastened at His waist.
English: That villainous crewgreed, infatuation, jealousy, arrogance and pride haunts the mind only so long as the Lord of the Raghus does not take up His abode there, armed with a bow and arrow and with a quiver fastened at His waist.
* ममता तरुन तमी अँधिआरी। राग द्वेष उलूक सुखकारी॥
तब लगि बसति जीव मन माहीं। जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं॥2॥
तब लगि बसति जीव मन माहीं। जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं॥2॥
भावार्थ:-ममता पूर्ण अँधेरी रात है, जो राग-द्वेष रूपी उल्लुओं को सुख देने वाली है। वह (ममता रूपी रात्रि) तभी तक जीव के मन में बसती है, जब तक प्रभु (आप) का प्रताप रूपी सूर्य उदय नहीं होता॥2||
English: Attachment to the world is like a dark night fully advanced, which is so delightful to the owls of attraction and aversion; it abides in the heart of a creature only so long as the sun of the Lords glory does not shine there. Having seen Your lotus feet,
English: Attachment to the world is like a dark night fully advanced, which is so delightful to the owls of attraction and aversion; it abides in the heart of a creature only so long as the sun of the Lords glory does not shine there. Having seen Your lotus feet,
* अब मैं कुसल मिटे भय भारे। देखि राम पद कमल तुम्हारे॥
तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला॥3॥
तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला॥3॥
भावार्थ:-हे श्री रामजी! आपके चरणारविन्द के दर्शन कर अब मैं कुशल से हूँ, मेरे भारी भय मिट गए। हे कृपालु! आप जिस पर अनुकूल होते हैं, उसे तीनों प्रकार के भवशूल (आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक ताप) नहीं व्यापते॥3||
English: O Ram, I am now quite well and my grave fears have been set at rest. The threefold torments of mundane existence cease to have any effect on him who enjoys Your favour, my gracious lord.
English: O Ram, I am now quite well and my grave fears have been set at rest. The threefold torments of mundane existence cease to have any effect on him who enjoys Your favour, my gracious lord.
* मैं निसिचर अति अधम सुभाऊ। सुभ आचरनु कीन्ह नहिं काऊ॥
जासु रूप मुनि ध्यान न आवा। तेहिं प्रभु हरषि हृदयँ मोहि लावा॥4॥
जासु रूप मुनि ध्यान न आवा। तेहिं प्रभु हरषि हृदयँ मोहि लावा॥4॥
भावार्थ:-मैं अत्यंत नीच स्वभाव का राक्षस हूँ। मैंने कभी शुभ आचरण नहीं किया। जिनका रूप मुनियों के भी ध्यान में नहीं आता, उन प्रभु ने स्वयं हर्षित होकर मुझे हृदय से लगा लिया॥4||
English: I am a demon vilest of nature and have never done any good act. Yet the Lord whose beauty even sages fail to perceive with their minds eye has been pleased to clasp me to His bosom.
English: I am a demon vilest of nature and have never done any good act. Yet the Lord whose beauty even sages fail to perceive with their minds eye has been pleased to clasp me to His bosom.
दोहा :
Doha:
Doha:
* अहोभाग्य मम अमित अति राम कृपा सुख पुंज।
देखेउँ नयन बिरंचि सिव सेब्य जुगल पद कंज॥47॥
देखेउँ नयन बिरंचि सिव सेब्य जुगल पद कंज॥47॥
भावार्थ:-हे कृपा और सुख के पुंज श्री रामजी! मेरा अत्यंत असीम सौभाग्य है, जो मैंने ब्रह्मा और शिवजी के द्वारा सेवित युगल चरण कमलों को अपने नेत्रों से देखा॥47||
English:Ah, I am blessed beyond measure, O all-gracious and all-blissful Rma, in that I have beheld with my own eyes the lotus feet which are worthy of adoration even to Brahma and Shiv.
English:Ah, I am blessed beyond measure, O all-gracious and all-blissful Rma, in that I have beheld with my own eyes the lotus feet which are worthy of adoration even to Brahma and Shiv.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ॥
जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवै सभय सरन तकि मोही॥1॥
जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवै सभय सरन तकि मोही॥1॥
भावार्थ:-(श्री रामजी ने कहा-) हे सखा! सुनो, मैं तुम्हें अपना स्वभाव कहता हूँ, जिसे काकभुशुण्डि, शिवजी और पार्वतीजी भी जानती हैं। कोई मनुष्य (संपूर्ण) जड़-चेतन जगत् का द्रोही हो, यदि वह भी भयभीत होकर मेरी शरण तक कर आ जाए,॥1||
English: Listen, My friend: I tell you My nature, which is known to Kakbhushundi, Shiv ji(Lord Shiv) and Parvati too. If a man, even though he has been an enemy of the whole animate and inanimate creation, comes terror-stricken to Me
English: Listen, My friend: I tell you My nature, which is known to Kakbhushundi, Shiv ji(Lord Shiv) and Parvati too. If a man, even though he has been an enemy of the whole animate and inanimate creation, comes terror-stricken to Me
* तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना॥
जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुहृद परिवारा॥2॥
जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुहृद परिवारा॥2॥
भावार्थ:-और मद, मोह तथा नाना प्रकार के छल-कपट त्याग दे तो मैं उसे बहुत शीघ्र साधु के समान कर देता हूँ। माता, पिता, भाई, पुत्र, स्त्री, शरीर, धन, घर, मित्र और परिवार॥2||
English: seeking My protection and discarding vanity, infatuation, hypocrisy and trickeries of various kinds, I speedily make him the very like of a saint. The ties of affection that bind a man to his mother, father, brother, son, wife, body, wealth, house, friends
English: seeking My protection and discarding vanity, infatuation, hypocrisy and trickeries of various kinds, I speedily make him the very like of a saint. The ties of affection that bind a man to his mother, father, brother, son, wife, body, wealth, house, friends
* सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥
समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥3॥
समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥3॥
भावार्थ:-इन सबके ममत्व रूपी तागों को बटोरकर और उन सबकी एक डोरी बनाकर उसके द्वारा जो अपने मन को मेरे चरणों में बाँध देता है। (सारे सांसारिक संबंधों का केंद्र मुझे बना लेता है), जो समदर्शी है, जिसे कुछ इच्छा नहीं है और जिसके मन में हर्ष, शोक और भय नहीं है॥3||
* अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें॥
तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें॥4॥
तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें॥4॥
भावार्थ:-ऐसा सज्जन मेरे हृदय में कैसे बसता है, जैसे लोभी के हृदय में धन बसा करता है। तुम सरीखे संत ही मुझे प्रिय हैं। मैं और किसी के निहोरे से (कृतज्ञतावश) देह धारण नहीं करता॥4||
English: A saint of this description abides in My heart even as mammon resides in the heart of a covetous man. Only saints of your type are dear to Me; for the sake of none else do I body Myself forth.
English: A saint of this description abides in My heart even as mammon resides in the heart of a covetous man. Only saints of your type are dear to Me; for the sake of none else do I body Myself forth.
दोहा :
Doha:
Doha:
* सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम।
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम॥48॥
ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम॥48॥
भावार्थ:-जो सगुण (साकार) भगवान् के उपासक हैं, दूसरे के हित में लगे रहते हैं, नीति और नियमों में दृढ़ हैं और जिन्हें ब्राह्मणों के चरणों में प्रेम है, वे मनुष्य मेरे प्राणों के समान हैं॥48||
English: Those men who worship My personal form, are intent on doing good to others, firmly tread the path of righteousness, and are steadfast in their vow and devoted to the feet of the Brahmas are dear to Me as life.
English: Those men who worship My personal form, are intent on doing good to others, firmly tread the path of righteousness, and are steadfast in their vow and devoted to the feet of the Brahmas are dear to Me as life.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* सुनु लंकेस सकल गुन तोरें। तातें तुम्ह अतिसय प्रिय मोरें॥।
राम बचन सुनि बानर जूथा। सकल कहहिं जय कृपा बरूथा॥1॥
राम बचन सुनि बानर जूथा। सकल कहहिं जय कृपा बरूथा॥1॥
भावार्थ:-हे लंकापति! सुनो, तुम्हारे अंदर उपर्युक्त सब गुण हैं। इससे तुम मुझे अत्यंत ही प्रिय हो। श्री रामजी के वचन सुनकर सब वानरों के समूह कहने लगे- कृपा के समूह श्री रामजी की जय हो॥1||
English: Listen, O king of Lanka; you possess all the above virtues; hence you are extremely dear to Me. On hearing the words of Shri Ram all the assembled monkeys exclaimed, Glory to the All-merciful !
English: Listen, O king of Lanka; you possess all the above virtues; hence you are extremely dear to Me. On hearing the words of Shri Ram all the assembled monkeys exclaimed, Glory to the All-merciful !
* सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी। नहिं अघात श्रवनामृत जानी॥
पद अंबुज गहि बारहिं बारा। हृदयँ समात न प्रेमु अपारा॥2॥
पद अंबुज गहि बारहिं बारा। हृदयँ समात न प्रेमु अपारा॥2॥
भावार्थ:-प्रभु की वाणी सुनते हैं और उसे कानों के लिए अमृत जानकर विभीषणजी अघाते नहीं हैं। वे बार-बार श्री रामजी के चरण कमलों को पकड़ते हैं अपार प्रेम है, हृदय में समाता नहीं है॥2||
English: Vibhishan`s eagerness to hear the Lords speech, which was all nectar to his ears, knew no satiety. He clasped His lotus feet again and again, his heart bursting with boundless joy.
English: Vibhishan`s eagerness to hear the Lords speech, which was all nectar to his ears, knew no satiety. He clasped His lotus feet again and again, his heart bursting with boundless joy.
* सुनहु देव सचराचर स्वामी। प्रनतपाल उर अंतरजामी॥
उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही॥3॥
उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही॥3॥
भावार्थ:-(विभीषणजी ने कहा-) हे देव! हे चराचर जगत् के स्वामी! हे शरणागत के रक्षक! हे सबके हृदय के भीतर की जानने वाले! सुनिए, मेरे हृदय में पहले कुछ वासना थी। वह प्रभु के चरणों की प्रीति रूपी नदी में बह गई॥3||
English: Listen, my lord, Ruler of the whole creationanimate as well as inanimate, Protector of the suppliant and Knower of all hearts: I did have some lurking desire in my heart before; but the same has been washed away by the stream of devotion to the Lords feet.
English: Listen, my lord, Ruler of the whole creationanimate as well as inanimate, Protector of the suppliant and Knower of all hearts: I did have some lurking desire in my heart before; but the same has been washed away by the stream of devotion to the Lords feet.
* अब कृपाल निज भगति पावनी। देहु सदा सिव मन भावनी॥
एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा॥4॥
एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा॥4॥
भावार्थ:-अब तो हे कृपालु! शिवजी के मन को सदैव प्रिय लगने वाली अपनी पवित्र भक्ति मुझे दीजिए। 'एवमस्तु' (ऐसा ही हो) कहकर रणधीर प्रभु श्री रामजी ने तुरंत ही समुद्र का जल माँगा॥4||
* जदपि सखा तव इच्छा नहीं। मोर दरसु अमोघ जग माहीं॥
अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा॥5॥
अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा॥5॥
भावार्थ:-(और कहा-) हे सखा! यद्यपि तुम्हारी इच्छा नहीं है, पर जगत् में मेरा दर्शन अमोघ है (वह निष्फल नहीं जाता)। ऐसा कहकर श्री रामजी ने उनको राजतिलक कर दिया। आकाश से पुष्पों की अपार वृष्टि हुई॥5||
दोहा :
Doha:
Doha:
* रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड।
जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेउ राजु अखंड॥49क॥
जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेउ राजु अखंड॥49क॥
भावार्थ:-श्री रामजी ने रावण की क्रोध रूपी अग्नि में, जो अपनी (विभीषण की) श्वास (वचन) रूपी पवन से प्रचंड हो रही थी, जलते हुए विभीषण को बचा लिया और उसे अखंड राज्य दिया॥49 (क)||
English: Thus did the Lord of the Raghus save Vibhishana from being consumed by the fire of Ravana`s wrath, fanned to fury by his own (Vibhishan`s) breath (words), and bestowed on him unbroken sovereignty.
English: Thus did the Lord of the Raghus save Vibhishana from being consumed by the fire of Ravana`s wrath, fanned to fury by his own (Vibhishan`s) breath (words), and bestowed on him unbroken sovereignty.
* जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ।
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ॥49ख॥
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ॥49ख॥
भावार्थ:-शिवजी ने जो संपत्ति रावण को दसों सिरों की बलि देने पर दी थी, वही संपत्ति श्री रघुनाथजी ने विभीषण को बहुत सकुचते हुए दी॥49 (ख)||
English: Nay, He conferred on Vibhishan with much diffidence the same fortune which Lord Shiv had bestowed on Ravana after the latter had offered his ten heads to Him in a sacrifice.
English: Nay, He conferred on Vibhishan with much diffidence the same fortune which Lord Shiv had bestowed on Ravana after the latter had offered his ten heads to Him in a sacrifice.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना। ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना॥
निज जन जानि ताहि अपनावा। प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा॥1॥
निज जन जानि ताहि अपनावा। प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा॥1॥
भावार्थ:-ऐसे परम कृपालु प्रभु को छोड़कर जो मनुष्य दूसरे को भजते हैं, वे बिना सींग-पूँछ के पशु हैं। अपना सेवक जानकर विभीषण को श्री रामजी ने अपना लिया। प्रभु का स्वभाव वानरकुल के मन को (बहुत) भाया॥1||
English: Those men who worship anyone else, giving up such a (benign) lord, are mere beasts without a tail and a pair of horns. Recognizing Vibhishan as His own man the Lord accepted him in His service; the amiability of His disposition gladdened the heart of the whole monkey host.
English: Those men who worship anyone else, giving up such a (benign) lord, are mere beasts without a tail and a pair of horns. Recognizing Vibhishan as His own man the Lord accepted him in His service; the amiability of His disposition gladdened the heart of the whole monkey host.
* पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी। सर्बरूप सब रहित उदासी॥
बोले बचन नीति प्रतिपालक। कारन मनुज दनुज कुल घालक॥2॥
बोले बचन नीति प्रतिपालक। कारन मनुज दनुज कुल घालक॥2॥
भावार्थ:-फिर सब कुछ जानने वाले, सबके हृदय में बसने वाले, सर्वरूप (सब रूपों में प्रकट), सबसे रहित, उदासीन, कारण से (भक्तों पर कृपा करने के लिए) मनुष्य बने हुए तथा राक्षसों के कुल का नाश करने वाले श्री रामजी नीति की रक्षा करने वाले वचन बोले-॥2||
English: Then the All-wise, who dwells in the heart of all, is manifest in all forms, though bereft of all and unconcerned, and who had appeared in human semblance with a specific motive and as the exterminator of the demon race, spoke words strictly observing the rules of decorum:
English: Then the All-wise, who dwells in the heart of all, is manifest in all forms, though bereft of all and unconcerned, and who had appeared in human semblance with a specific motive and as the exterminator of the demon race, spoke words strictly observing the rules of decorum: