दोहा :
Doha:
Doha:
* सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥37॥
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास॥37॥
भावार्थ:-मंत्री, वैद्य और गुरु- ये तीन यदि (अप्रसन्नता के) भय या (लाभ की) आशा से (हित की बात न कहकर) प्रिय बोलते हैं (ठकुर सुहाती कहने लगते हैं), तो (क्रमशः) राज्य, शरीर और धर्म- इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है॥37||
English: When a minister, a physician and a religious preceptor these three use pleasing words from fear or hope of reward, the result is that dominion, health and faithall the three forthwith go to the dogs.
English: When a minister, a physician and a religious preceptor these three use pleasing words from fear or hope of reward, the result is that dominion, health and faithall the three forthwith go to the dogs.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* सोइ रावन कहुँ बनी सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥
अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥1॥
अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥1॥
भावार्थ:-रावण के लिए भी वही सहायता (संयोग) आ बनी है। मंत्री उसे सुना-सुनाकर (मुँह पर) स्तुति करते हैं। (इसी समय) अवसर जानकर विभीषणजी आए। उन्होंने बड़े भाई के चरणों में सिर नवाया॥1||
English: It was such a contingency that presented itself before Ravana. They all extolled him only to his face. Perceiving it to be an opportune hour, Vibhishan (Ravan`s youngest brother) arrived and bowed his head at his brothers feet.
English: It was such a contingency that presented itself before Ravana. They all extolled him only to his face. Perceiving it to be an opportune hour, Vibhishan (Ravan`s youngest brother) arrived and bowed his head at his brothers feet.
* पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन॥
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरूप कहउँ हित ताता॥2॥
जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरूप कहउँ हित ताता॥2॥
भावार्थ:-फिर से सिर नवाकर अपने आसन पर बैठ गए और आज्ञा पाकर ये वचन बोले- हे कृपाल जब आपने मुझसे बात (राय) पूछी ही है, तो हे तात! मैं अपनी बुद्धि के अनुसार आपके हित की बात कहता हूँ-॥2||
English: Bowing his head once more he occupied his own seat and, when ordered to speak, addressed him thus: Since Your gracious Majesty has asked me my opinion I tender it, dear brother, according to my own lights and in your own interest.
English: Bowing his head once more he occupied his own seat and, when ordered to speak, addressed him thus: Since Your gracious Majesty has asked me my opinion I tender it, dear brother, according to my own lights and in your own interest.
* जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥
सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥3॥
सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥3॥
भावार्थ:-जो मनुष्य अपना कल्याण, सुंदर यश, सुबुद्धि, शुभ गति और नाना प्रकार के सुख चाहता हो, वह हे स्वामी! परस्त्री के ललाट को चौथ के चंद्रमा की तरह त्याग दे (अर्थात् जैसे लोग चौथ के चंद्रमा को नहीं देखते, उसी प्रकार परस्त्री का मुख ही न देखे)॥3||
English: Let him who seeks after his welfare, good reputation, wisdom, a good destiny after his death and joys of various kinds turn his eyes away from the brow of anothers wife even as one should refuse to see the moon on the fourth night (of the bright half) of a lunar month.
English: Let him who seeks after his welfare, good reputation, wisdom, a good destiny after his death and joys of various kinds turn his eyes away from the brow of anothers wife even as one should refuse to see the moon on the fourth night (of the bright half) of a lunar month.
* चौदह भुवन एक पति होई। भूत द्रोह तिष्टइ नहिं सोई॥
गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥4॥
गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥4॥
भावार्थ:-चौदहों भुवनों का एक ही स्वामी हो, वह भी जीवों से वैर करके ठहर नहीं सकता (नष्ट हो जाता है) जो मनुष्य गुणों का समुद्र और चतुर हो, उसे चाहे थोड़ा भी लोभ क्यों न हो, तो भी कोई भला नहीं कहता॥4||
दोहा :
Doha:
Doha:
* काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥38॥
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥38॥
भावार्थ:-हे नाथ! काम, क्रोध, मद और लोभ- ये सब नरक के रास्ते हैं, इन सबको छोड़कर श्री रामचंद्रजी को भजिए, जिन्हें संत (सत्पुरुष) भजते हैं॥38||
English: Lust, anger, vanity and covetousness are all paths leading to hell. Abjuring, all these adore the Hero of Raghus line, whom saints worship.
English: Lust, anger, vanity and covetousness are all paths leading to hell. Abjuring, all these adore the Hero of Raghus line, whom saints worship.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला॥
ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता॥1॥
ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता॥1॥
भावार्थ:-हे तात! राम मनुष्यों के ही राजा नहीं हैं। वे समस्त लोकों के स्वामी और काल के भी काल हैं। वे (संपूर्ण ऐश्वर्य, यश, श्री, धर्म, वैराग्य एवं ज्ञान के भंडार) भगवान् हैं, वे निरामय (विकाररहित), अजन्मे, व्यापक, अजेय, अनादि और अनंत ब्रह्म हैं॥1||
English: Shri Ram, dear brother, is no mere human king; He is the Lord of the universe and the Death of Death himself. He is the Brahma (Absolute) who is free from the malady of Maya, the unborn God, all-pervading, invincible, without beginning or end.
English: Shri Ram, dear brother, is no mere human king; He is the Lord of the universe and the Death of Death himself. He is the Brahma (Absolute) who is free from the malady of Maya, the unborn God, all-pervading, invincible, without beginning or end.
* गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपा सिंधु मानुष तनुधारी॥
जन रंजन भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता॥2॥
जन रंजन भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता॥2॥
भावार्थ:-उन कृपा के समुद्र भगवान् ने पृथ्वी, ब्राह्मण, गो और देवताओं का हित करने के लिए ही मनुष्य शरीर धारण किया है। हे भाई! सुनिए, वे सेवकों को आनंद देने वाले, दुष्टों के समूह का नाश करने वाले और वेद तथा धर्म की रक्षा करने वाले हैं॥2||
English: An ocean of compassion, He has assumed the form of a human being for the good of Earth, the Brahmana, the cow and the gods. Listen, brother: He delights His devotees and breaks the ranks of the impious and is the champion of the Vedas and true religion.
English: An ocean of compassion, He has assumed the form of a human being for the good of Earth, the Brahmana, the cow and the gods. Listen, brother: He delights His devotees and breaks the ranks of the impious and is the champion of the Vedas and true religion.
* ताहि बयरु तजि नाइअ माथा। प्रनतारति भंजन रघुनाथा॥
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही। भजहु राम बिनु हेतु सनेही॥3॥
देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही। भजहु राम बिनु हेतु सनेही॥3॥
भावार्थ:-वैर त्यागकर उन्हें मस्तक नवाइए। वे श्री रघुनाथजी शरणागत का दुःख नाश करने वाले हैं। हे नाथ! उन प्रभु (सर्वेश्वर) को जानकीजी दे दीजिए और बिना ही कारण स्नेह करने वाले श्री रामजी को भजिए॥3||
English: Giving up enmity with Him, bow your head to Him; for the Lord of the Raghus relieves the distress of those who seek refuge in Him. My master, restore Videhas Daughter to the Lord Shri Ram, and adore Him,
English: Giving up enmity with Him, bow your head to Him; for the Lord of the Raghus relieves the distress of those who seek refuge in Him. My master, restore Videhas Daughter to the Lord Shri Ram, and adore Him,
दोहा :
Doha:
Doha:
* सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा। बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा॥
जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन॥4॥
जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन॥4॥
भावार्थ:-जिसे संपूर्ण जगत् से द्रोह करने का पाप लगा है, शरण जाने पर प्रभु उसका भी त्याग नहीं करते। जिनका नाम तीनों तापों का नाश करने वाला है, वे ही प्रभु (भगवान्) मनुष्य रूप में प्रकट हुए हैं। हे रावण! हृदय में यह समझ लीजिए॥4||
English: the disinterested friend of all. On being approached, He forsakes not even him who has incurred sin by wishing ill to the whole world. Bear this in mind, Ravana: the same Lord whose Name destroys the threefold agony has manifested Himself (in human form).
English: the disinterested friend of all. On being approached, He forsakes not even him who has incurred sin by wishing ill to the whole world. Bear this in mind, Ravana: the same Lord whose Name destroys the threefold agony has manifested Himself (in human form).
दोहा :
Doha:
Doha:
* बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस।
परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस॥39क॥
परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस॥39क॥
भावार्थ:-हे दशशीश! मैं बार-बार आपके चरणों लगता हूँ और विनती करता हूँ कि मान, मोह और मद को त्यागकर आप कोसलपति श्री रामजी का भजन कीजिए॥39 (क)||
English: Again and again I fall at your feet and pray you, Ravana: abandoning pride, infatuation and arrogance, adore the Lord of Kosala.
English: Again and again I fall at your feet and pray you, Ravana: abandoning pride, infatuation and arrogance, adore the Lord of Kosala.
* मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात।
तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात॥39ख॥
तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात॥39ख॥
भावार्थ:-मुनि पुलस्त्यजी ने अपने शिष्य के हाथ यह बात कहला भेजी है। हे तात! सुंदर अवसर पाकर मैंने तुरंत ही वह बात प्रभु (आप) से कह दी॥39 (ख)||
English: The sage Pulastya (our grand-father) had sent this message to us through a disciple of his. Availing myself of this golden opportunity, dear brother, I have immediately conveyed it to you.
English: The sage Pulastya (our grand-father) had sent this message to us through a disciple of his. Availing myself of this golden opportunity, dear brother, I have immediately conveyed it to you.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना॥
तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥1॥
तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥1॥
भावार्थ:-माल्यवान् नाम का एक बहुत ही बुद्धिमान मंत्री था। उसने उन (विभीषण) के वचन सुनकर बहुत सुख माना (और कहा-) हे तात! आपके छोटे भाई नीति विभूषण (नीति को भूषण रूप में धारण करने वाले अर्थात् नीतिमान्) हैं। विभीषण जो कुछ कह रहे हैं उसे हृदय में धारण कर लीजिए॥1||
English: Ravan had a very old and sagacious minister named Malyavan. He felt much gratified to hear Vibhishana`s words. Your younger brother, dear son, is the very ornament of wisdom. Therefore, take to heart what Vibhishana says.
English: Ravan had a very old and sagacious minister named Malyavan. He felt much gratified to hear Vibhishana`s words. Your younger brother, dear son, is the very ornament of wisdom. Therefore, take to heart what Vibhishana says.
* रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दूरि न करहु इहाँ हइ कोऊ॥
माल्यवंत गह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी॥2॥
माल्यवंत गह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी॥2॥
भावार्थ:-(रावन ने कहा-) ये दोनों मूर्ख शत्रु की महिमा बखान रहे हैं। यहाँ कोई है? इन्हें दूर करो न! तब माल्यवान् तो घर लौट गया और विभीषणजी हाथ जोड़कर फिर कहने लगे-॥2||
English: Both these fools glorify the enemy ! Is there no one here who will remove them out of my sight ? Malyavana thereupon returned to his residence, while Vibhishana began again with joined palms:
English: Both these fools glorify the enemy ! Is there no one here who will remove them out of my sight ? Malyavana thereupon returned to his residence, while Vibhishana began again with joined palms:
* सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥3॥
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥3॥
भावार्थ:-हे नाथ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि (अच्छी बुद्धि) और कुबुद्धि (खोटी बुद्धि) सबके हृदय में रहती है, जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार की संपदाएँ (सुख की स्थिति) रहती हैं और जहाँ कुबुद्धि है वहाँ परिणाम में विपत्ति (दुःख) रहती है॥3||
English: Wisdom and unwisdom dwell in the heart of all: so declare the Puranas and Vedas, my lord. Where there is wisdom, prosperity of every kind reigns; and where there is unwisdom misfortune is the inevitable end.
English: Wisdom and unwisdom dwell in the heart of all: so declare the Puranas and Vedas, my lord. Where there is wisdom, prosperity of every kind reigns; and where there is unwisdom misfortune is the inevitable end.
* तव उर कुमति बसी बिपरीता। हित अनहित मानहु रिपु प्रीता॥
कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रीति घनेरी॥4॥
कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रीति घनेरी॥4॥
भावार्थ:-आपके हृदय में उलटी बुद्धि आ बसी है। इसी से आप हित को अहित और शत्रु को मित्र मान रहे हैं। जो राक्षस कुल के लिए कालरात्रि (के समान) हैं, उन सीता पर आपकी बड़ी प्रीति है॥4||
दोहा :
Doha:
Doha:
* तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार।
सीता देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हारा॥40॥
सीता देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हारा॥40॥
भावार्थ:-हे तात! मैं चरण पकड़कर आपसे भीख माँगता हूँ (विनती करता हूँ)। कि आप मेरा दुलार रखिए (मुझ बालक के आग्रह को स्नेहपूर्वक स्वीकार कीजिए) श्री रामजी को सीताजी दे दीजिए, जिसमें आपका अहित न हो॥40||
English: Clasping your feet I beseech you: grant this prayer of mine as a token of affection for me. Restore Sita to Ram so that no harm may come to you.
English: Clasping your feet I beseech you: grant this prayer of mine as a token of affection for me. Restore Sita to Ram so that no harm may come to you.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* बुध पुरान श्रुति संमत बानी। कही बिभीषन नीति बखानी॥
सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहिं निकट मृत्यु अब आई॥1॥
सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहिं निकट मृत्यु अब आई॥1॥
भावार्थ:-विभीषण ने पंडितों, पुराणों और वेदों द्वारा सम्मत (अनुमोदित) वाणी से नीति बखानकर कही। पर उसे सुनते ही रावण क्रोधित होकर उठा और बोला कि रे दुष्ट! अब मृत्यु तेरे निकट आ गई है!॥1||
English: Vibhishana spoke wisdom and that too in words that had the approval of the wise, as well as of the Puranas and Vedas. Ravana, however, rose in a fury as soon as he heard them. O wretch, your death is imminent now.
English: Vibhishana spoke wisdom and that too in words that had the approval of the wise, as well as of the Puranas and Vedas. Ravana, however, rose in a fury as soon as he heard them. O wretch, your death is imminent now.
* जिअसि सदा सठ मोर जिआवा। रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा॥
कहसि न खल अस को जग माहीं। भुज बल जाहि जिता मैं नाहीं॥2॥
कहसि न खल अस को जग माहीं। भुज बल जाहि जिता मैं नाहीं॥2॥
भावार्थ:-अरे मूर्ख! तू जीता तो है सदा मेरा जिलाया हुआ (अर्थात् मेरे ही अन्न से पल रहा है), पर हे मूढ़! पक्ष तुझे शत्रु का ही अच्छा लगता है। अरे दुष्ट! बता न, जगत् में ऐसा कौन है जिसे मैंने अपनी भुजाओं के बल से न जीता हो?॥2||
English: O fool, you have always lived on my generosity; yet, O dullard, you have favoured the enemys cause. Tell me, wretch, if there is any one in this world whom I have failed to conquer by the might of my arm.
English: O fool, you have always lived on my generosity; yet, O dullard, you have favoured the enemys cause. Tell me, wretch, if there is any one in this world whom I have failed to conquer by the might of my arm.
* मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती॥
अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा। अनुज गहे पद बारहिं बारा॥3॥
अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा। अनुज गहे पद बारहिं बारा॥3॥
भावार्थ:-मेरे नगर में रहकर प्रेम करता है तपस्वियों पर। मूर्ख! उन्हीं से जा मिल और उन्हीं को नीति बता। ऐसा कहकर रावण ने उन्हें लात मारी, परंतु छोटे भाई विभीषण ने (मारने पर भी) बार-बार उसके चरण ही पकड़े॥3||
English: Dwelling in my capital you cherish love for the hermits ! If so, go and join hands with them, O fool, and teach wisdom to them. So saying, he kicked his younger brother, who in his turn clasped his brothers feet again and again.
English: Dwelling in my capital you cherish love for the hermits ! If so, go and join hands with them, O fool, and teach wisdom to them. So saying, he kicked his younger brother, who in his turn clasped his brothers feet again and again.
* उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई॥
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा। रामु भजें हित नाथ तुम्हारा॥4॥
तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा। रामु भजें हित नाथ तुम्हारा॥4॥
भावार्थ:-(शिवजी कहते हैं-) हे उमा! संत की यही बड़ाई (महिमा) है कि वे बुराई करने पर भी (बुराई करने वाले की) भलाई ही करते हैं। (विभीषणजी ने कहा-) आप मेरे पिता के समान हैं, मुझे मारा सो तो अच्छा ही किया, परंतु हे नाथ! आपका भला श्री रामजी को भजने में ही है॥4||
English: Uma, here lies the greatness of a saint, who returns good for evil. It is well you have beaten me, since you are like a father to me. But your welfare, my lord, lies in adoring Shri Ram.
English: Uma, here lies the greatness of a saint, who returns good for evil. It is well you have beaten me, since you are like a father to me. But your welfare, my lord, lies in adoring Shri Ram.
* सचिव संग लै नभ पथ गयऊ। सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ॥5॥
भावार्थ:-(इतना कहकर) विभीषण अपने मंत्रियों को साथ लेकर आकाश मार्ग में गए और सबको सुनाकर वे ऐसा कहने लगे-॥5॥
English: Taking his ministers with him Vibhishana departed through the air exclaiming so as to make himself heard by all:
English: Taking his ministers with him Vibhishana departed through the air exclaiming so as to make himself heard by all: