चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* इहाँ प्रात जागे रघुराई। पूछा मत सब सचिव बोलाई॥
कहहु बेगि का करिअ उपाई। जामवंत कह पद सिरु नाई॥1॥
कहहु बेगि का करिअ उपाई। जामवंत कह पद सिरु नाई॥1॥
भावार्थ:- यहाँ (सुबेल पर्वत पर) प्रातःकाल श्री रघुनाथजी जागे और उन्होंने सब मंत्रियों को बुलाकर सलाह पूछी कि शीघ्र बताइए, अब क्या उपाय करना चाहिए? जाम्बवान् ने श्री रामजी के चरणों में सिर नवाकर कहा-॥1||
English: At this end the Lord of the Raghus woke at daybreak and, summoning all His counsellors, asked their opinion: Tell me quickly what course should be adopted. Jambvan bowed his head at the Lords feet and said
English: At this end the Lord of the Raghus woke at daybreak and, summoning all His counsellors, asked their opinion: Tell me quickly what course should be adopted. Jambvan bowed his head at the Lords feet and said
* सुनु सर्बग्य सकल उर बासी। बुधि बल तेज धर्म गुन रासी॥
मंत्र कहउँ निज मति अनुसारा। दूत पठाइअ बालि कुमारा॥2॥
मंत्र कहउँ निज मति अनुसारा। दूत पठाइअ बालि कुमारा॥2॥
भावार्थ:- हे सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाले)! हे सबके हृदय में बसने वाले (अंतर्यामी)! हे बुद्धि, बल, तेज, धर्म और गुणों की राशि! सुनिए! मैं अपनी बुद्धि के अनुसार सलाह देता हूँ कि बालिकुमार अंगद को दूत बनाकर भेजा जाए!॥2||
* नीक मंत्र सब के मन माना। अंगद सन कह कृपानिधाना॥
बालितनय बुधि बल गुन धामा। लंका जाहु तात मम कामा॥3॥
बालितनय बुधि बल गुन धामा। लंका जाहु तात मम कामा॥3॥
भावार्थ:- यह अच्छी सलाह सबके मन में जँच गई। कृपा के निधान श्री रामजी ने अंगद से कहा- हे बल, बुद्धि और गुणों के धाम बालिपुत्र! हे तात! तुम मेरे काम के लिए लंका जाओ॥3||
English: The good counsel commended itself to all and the All-merciful turned to Angad and said, O son of Vali, repository of wisdom, strength and goodness! go to Lanka, dear son, for My cause.
English: The good counsel commended itself to all and the All-merciful turned to Angad and said, O son of Vali, repository of wisdom, strength and goodness! go to Lanka, dear son, for My cause.
* बहुत बुझाइ तुम्हहि का कहऊँ। परम चतुर मैं जानत अहऊँ॥
काजु हमार तासु हित होई। रिपु सन करेहु बतकही सोई॥4॥
काजु हमार तासु हित होई। रिपु सन करेहु बतकही सोई॥4॥
भावार्थ:- तुमको बहुत समझाकर क्या कहूँ! मैं जानता हूँ, तुम परम चतुर हो। शत्रु से वही बातचीत करना, जिससे हमारा काम हो और उसका कल्याण हो॥4||
सोरठा :
Soratha:
Soratha:
* प्रभु अग्या धरि सीस चरन बंदि अंगद उठेउ।
सोइ गुन सागर ईस राम कृपा जा कर करहु॥17 क॥
सोइ गुन सागर ईस राम कृपा जा कर करहु॥17 क॥
भावार्थ:-प्रभु की आज्ञा सिर चढ़कर और उनके चरणों की वंदना करके अंगदजी उठे (और बोले-) हे भगवान् श्री रामजी! आप जिस पर कृपा करें, वही गुणों का समुद्र हो जाता है॥17 (क)||
English: Bowing to the Lords command and adoring His feet, Angad arose and said, He alone is an ocean of virtues, on whom You shower Your grace, O divine Rama.
English: Bowing to the Lords command and adoring His feet, Angad arose and said, He alone is an ocean of virtues, on whom You shower Your grace, O divine Rama.
* स्वयंसिद्ध सब काज नाथ मोहि आदरु दियउ।
अस बिचारि जुबराज तन पुलकित हरषित हियउ॥17 ख॥
अस बिचारि जुबराज तन पुलकित हरषित हियउ॥17 ख॥
भावार्थ:-स्वामी सब कार्य अपने-आप सिद्ध हैं, यह तो प्रभु ने मुझ को आदर दिया है (जो मुझे अपने कार्य पर भेज रहे हैं)। ऐसा विचार कर युवराज अंगद का हृदय हर्षित और शरीर पुलकित हो गया॥17 (ख)||
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* बंदि चरन उर धरि प्रभुताई। अंगद चलेउ सबहि सिरु नाई॥
प्रभु प्रताप उर सहज असंका। रन बाँकुरा बालिसुत बंका॥1॥
प्रभु प्रताप उर सहज असंका। रन बाँकुरा बालिसुत बंका॥1॥
भावार्थ:- चरणों की वंदना करके और भगवान् की प्रभुता हृदय में धरकर अंगद सबको सिर नवाकर चले। प्रभु के प्रताप को हृदय में धारण किए हुए रणबाँकुरे वीर बालिपुत्र स्वाभाविक ही निर्भय हैं॥1||
* पुर पैठत रावन कर बेटा। खेलत रहा सो होइ गै भेंटा॥
बातहिं बात करष बढ़ि आई। जुगल अतुल बल पुनि तरुनाई॥2॥
बातहिं बात करष बढ़ि आई। जुगल अतुल बल पुनि तरुनाई॥2॥
भावार्थ:-लंका में प्रवेश करते ही रावण के पुत्र से भेंट हो गई, जो वहाँ खेल रहा था। बातों ही बातों में दोनों में झगड़ा बढ़ गया (क्योंकि) दोनों ही अतुलनीय बलवान् थे और फिर दोनों की युवावस्था थी॥2||
* तेहिं अंगद कहुँ लात उठाई। गहि पद पटकेउ भूमि भवाँई॥
निसिचर निकर देखि भट भारी। जहँ तहँ चले न सकहिं पुकारी॥3॥
निसिचर निकर देखि भट भारी। जहँ तहँ चले न सकहिं पुकारी॥3॥
भावार्थ:- उसने अंगद पर लात उठाई। अंगद ने (वही) पैर पकड़कर उसे घुमाकर जमीन पर दे पटका (मार गिराया)। राक्षस के समूह भारी योद्धा देखकर जहाँ-तहाँ (भाग) चले, वे डर के मारे पुकार भी न मचा सके॥3||
English: He raised his foot to kick Angad, who in his turn seized the foot and, swinging him round, dashed him to the ground finding him a formidable warrior, the demons ran helter-skelter in large numbers, too much frightened to raise an alarm. They did not tell one another what had happened,
English: He raised his foot to kick Angad, who in his turn seized the foot and, swinging him round, dashed him to the ground finding him a formidable warrior, the demons ran helter-skelter in large numbers, too much frightened to raise an alarm. They did not tell one another what had happened,
* एक एक सन मरमु न कहहीं। समुझि तासु बध चुप करि रहहीं॥
भयउ कोलाहल नगर मझारी। आवा कपि लंका जेहिं जारी॥4॥
भयउ कोलाहल नगर मझारी। आवा कपि लंका जेहिं जारी॥4॥
भावार्थ:-एक-दूसरे को मर्म (असली बात) नहीं बतलाते, उस (रावण के पुत्र) का वध समझकर सब चुप मारकर रह जाते हैं। (रावण पुत्र की मृत्यु जानकर और राक्षसों को भय के मारे भागते देखकर) नगरभर में कोलाहल मच गया कि जिसने लंका जलाई थी, वही वानर फिर आ गया है॥4||
English: but kept quiet when they thought of the death of Ravan`s son. There was a cry in the whole city that the same monkey who had burnt down Lanka had come again.
English: but kept quiet when they thought of the death of Ravan`s son. There was a cry in the whole city that the same monkey who had burnt down Lanka had come again.
* अब धौं कहा करिहि करतारा। अति सभीत सब करहिं बिचारा॥
बिनु पूछें मगु देहिं दिखाई। जेहि बिलोक सोइ जाइ सुखाई॥5॥
बिनु पूछें मगु देहिं दिखाई। जेहि बिलोक सोइ जाइ सुखाई॥5॥
भावार्थ:- सब अत्यंत भयभीत होकर विचार करने लगे कि विधाता अब न जाने क्या करेगा। वे बिना पूछे ही अंगद को (रावण के दरबार की) राह बता देते हैं। जिसे ही वे देखते हैं, वही डर के मारे सूख जाता है॥5||
English: Who knows what turn Providence is going to take? everyone thought in excessive dismay. People showed him the way unasked: if he but looked at anyone, the latter would turn deadly pale.
English: Who knows what turn Providence is going to take? everyone thought in excessive dismay. People showed him the way unasked: if he but looked at anyone, the latter would turn deadly pale.
दोहा :
Doha:
Doha:
* गयउ सभा दरबार तब सुमिरि राम पद कंज।
सिंह ठवनि इत उत चितव धीर बीर बल पुंज॥18॥
सिंह ठवनि इत उत चितव धीर बीर बल पुंज॥18॥
भावार्थ:- श्री रामजी के चरणकमलों का स्मरण करके अंगद रावण की सभा के द्वार पर गए और वे धीर, वीर और बल की राशि अंगद सिंह की सी ऐंड़ (शान) से इधर-उधर देखने लगे॥18||
चौपाई :
Chaupai:
* तुरत निसाचर एक पठावा। समाचार रावनहि जनावा॥
सुनत बिहँसि बोला दससीसा। आनहु बोलि कहाँ कर कीसा॥1॥
सुनत बिहँसि बोला दससीसा। आनहु बोलि कहाँ कर कीसा॥1॥
भावार्थ:- तुरंत ही उन्होंने एक राक्षस को भेजा और रावण को अपने आने का समाचार सूचित किया। सुनते ही रावण हँसकर बोला- बुला लाओ, (देखें) कहाँ का बंदर है॥1||
English: He forthwith sent a demon and apprised Ravana of his arrival. On hearing the news the ten-headed monster laughed and said. Go, usher him in my presence and let me see where the monkey has come from.
English: He forthwith sent a demon and apprised Ravana of his arrival. On hearing the news the ten-headed monster laughed and said. Go, usher him in my presence and let me see where the monkey has come from.
* आयसु पाइ दूत बहु धाए। कपिकुंजरहि बोलि लै आए॥
अंगद दीख दसानन बैसें। सहित प्रान कज्जलगिरि जैसें॥2॥
अंगद दीख दसानन बैसें। सहित प्रान कज्जलगिरि जैसें॥2॥
भावार्थ:- आज्ञा पाकर बहुत से दूत दौड़े और वानरों में हाथी के समान अंगद को बुला लाए। अंगद ने रावण को ऐसे बैठे हुए देखा, जैसे कोई प्राणयुक्त (सजीव) काजल का पहाड़ हो!॥2||
* भुजा बिटप सिर सृंग समाना। रोमावली लता जनु नाना॥
मुख नासिका नयन अरु काना। गिरि कंदरा खोह अनुमाना॥3॥
मुख नासिका नयन अरु काना। गिरि कंदरा खोह अनुमाना॥3॥
भावार्थ:- भुजाएँ वृक्षों के और सिर पर्वतों के शिखरों के समान हैं। रोमावली मानो बहुत सी लताएँ हैं। मुँह, नाक, नेत्र और कान पर्वत की कन्दराओं और खोहों के बराबर हैं॥3||
English: His arms looked like trees and heads like peaks; while the hair on his body presented the appearance of numerous creepers. His mouths, nostrils, eyes and ears were as big as mountain caves and chasms.
English: His arms looked like trees and heads like peaks; while the hair on his body presented the appearance of numerous creepers. His mouths, nostrils, eyes and ears were as big as mountain caves and chasms.
* गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा। बालितनय अतिबल बाँकुरा॥
उठे सभासद कपि कहुँ देखी। रावन उर भा क्रोध बिसेषी॥4॥
उठे सभासद कपि कहुँ देखी। रावन उर भा क्रोध बिसेषी॥4॥
भावार्थ:- अत्यंत बलवान् बाँके वीर बालिपुत्र अंगद सभा में गए, वे मन में जरा भी नहीं झिझके। अंगद को देखते ही सब सभासद् उठ खड़े हुए। यह देखकर रावण के हृदय में बड़ा क्रोध हुआ॥4||
English: With an unflinching mind he entered the court, the valiant son of Vali, possessed of great might. The assembly abruptly rose at the sight of the monkey; at this Ravan`s heart was filled with great fury.
English: With an unflinching mind he entered the court, the valiant son of Vali, possessed of great might. The assembly abruptly rose at the sight of the monkey; at this Ravan`s heart was filled with great fury.
दोहा :
Doha:
Doha:
* जथा मत्त गज जूथ महुँ पंचानन चलि जाइ।
राम प्रताप सुमिरि मन बैठ सभाँ सिरु नाइ॥19॥
राम प्रताप सुमिरि मन बैठ सभाँ सिरु नाइ॥19॥
भावार्थ:- जैसे मतवाले हाथियों के झुंड में सिंह (निःशंक होकर) चला जाता है, वैसे ही श्री रामजी के प्रताप का हृदय में स्मरण करके वे (निर्भय) सभा में सिर नवाकर बैठ गए॥19||
English: Thinking of Shri Ram`s might Angada bowed his head and took his seat in the assembly as fearlessly as a lion treads in the midst of mad elephants.
English: Thinking of Shri Ram`s might Angada bowed his head and took his seat in the assembly as fearlessly as a lion treads in the midst of mad elephants.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* कह दसकंठ कवन तैं बंदर। मैं रघुबीर दूत दसकंधर॥
मम जनकहि तोहि रही मिताई। तव हित कारन आयउँ भाई॥1॥
मम जनकहि तोहि रही मिताई। तव हित कारन आयउँ भाई॥1॥
भावार्थ:- रावण ने कहा- अरे बंदर! तू कौन है? (अंगद ने कहा-) हे दशग्रीव! मैं श्री रघुवीर का दूत हूँ। मेरे पिता से और तुमसे मित्रता थी, इसलिए हे भाई! मैं तुम्हारी भलाई के लिए ही आया हूँ॥1||
English: Monkey, who are you? Ravana asked. I am an ambassador from the Hero of Raghus line, Ravana. There was friendship between you and my father; hence it is in your interest, brother, that I have come.
English: Monkey, who are you? Ravana asked. I am an ambassador from the Hero of Raghus line, Ravana. There was friendship between you and my father; hence it is in your interest, brother, that I have come.
* उत्तम कुल पुलस्ति कर नाती। सिव बिंरचि पूजेहु बहु भाँती॥
बर पायहु कीन्हेहु सब काजा। जीतेहु लोकपाल सब राजा॥2॥
बर पायहु कीन्हेहु सब काजा। जीतेहु लोकपाल सब राजा॥2॥
भावार्थ:- तुम्हारा उत्तम कुल है, पुलस्त्य ऋषि के तुम पौत्र हो। शिवजी की और ब्रह्माजी की तुमने बहुत प्रकार से पूजा की है। उनसे वर पाए हैं और सब काम सिद्ध किए हैं। लोकपालों और सब राजाओं को तुमने जीत लिया है॥2||
English: Of noble descent and a grandson of the sage Pulastya (one of the mind-born sons of Brahma), you worshipped Lord Shiva and Brahma in various ways, obtained boons from them, accomplished all your objects and conquered the guardians of the different spheres as well as all earthly sovereigns.
English: Of noble descent and a grandson of the sage Pulastya (one of the mind-born sons of Brahma), you worshipped Lord Shiva and Brahma in various ways, obtained boons from them, accomplished all your objects and conquered the guardians of the different spheres as well as all earthly sovereigns.
* नृप अभिमान मोह बस किंबा। हरि आनिहु सीता जगदंबा॥
अब सुभ कहा सुनहु तुम्ह मोरा। सब अपराध छमिहि प्रभु तोरा॥3॥
अब सुभ कहा सुनहु तुम्ह मोरा। सब अपराध छमिहि प्रभु तोरा॥3॥
भावार्थ:- राजमद से या मोहवश तुम जगज्जननी सीताजी को हर लाए हो। अब तुम मेरे शुभ वचन (मेरी हितभरी सलाह) सुनो! (उसके अनुसार चलने से) प्रभु श्री रामजी तुम्हारे सब अपराध क्षमा कर देंगे॥3||
English: Under the influence of kingly pride or infatuation you carried off Sita, the Mother of the Universe. But even now you listen to my friendly advice and the Lord will forgive all your offences.
English: Under the influence of kingly pride or infatuation you carried off Sita, the Mother of the Universe. But even now you listen to my friendly advice and the Lord will forgive all your offences.
* दसन गहहु तृन कंठ कुठारी। परिजन सहित संग निज नारी॥
सादर जनकसुता करि आगें। एहि बिधि चलहु सकल भय त्यागें॥4॥
सादर जनकसुता करि आगें। एहि बिधि चलहु सकल भय त्यागें॥4॥
भावार्थ:-दाँतों में तिनका दबाओ, गले में कुल्हाड़ी डालो और कुटुम्बियों सहित अपनी स्त्रियों को साथ लेकर, आदरपूर्वक जानकीजी को आगे करके, इस प्रकार सब भय छोड़कर चलो-॥4||
English: Put a straw between the rows of your teeth and an axe by your throat and take all your people including your wives with you, respectfully placing Janakas Daughter at the head. In this way repair to Him shedding all fear.
English: Put a straw between the rows of your teeth and an axe by your throat and take all your people including your wives with you, respectfully placing Janakas Daughter at the head. In this way repair to Him shedding all fear.
दोहा :
Doha:
Doha:
* प्रनतपाल रघुबंसमनि त्राहि त्राहि अब मोहि।
आरत गिरा सुनत प्रभु अभय करेंगे तोहि॥20॥
आरत गिरा सुनत प्रभु अभय करेंगे तोहि॥20॥
भावार्थ:- और 'हे शरणागत के पालन करने वाले रघुवंश शिरोमणि श्री रामजी! मेरी रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए।' (इस प्रकार आर्त प्रार्थना करो।) आर्त पुकार सुनते ही प्रभु तुमको निर्भय कर देंगे॥20||
English: And address Him thus: O Protector of the suppliant, O Jewel of Raghus race, save me, save me now. The moment He hears your piteous cry the Lord will surely rid you of every fear.
English: And address Him thus: O Protector of the suppliant, O Jewel of Raghus race, save me, save me now. The moment He hears your piteous cry the Lord will surely rid you of every fear.
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* रे कपिपोत बोलु संभारी। मूढ़ न जानेहि मोहि सुरारी॥
कहु निज नाम जनक कर भाई। केहि नातें मानिऐ मिताई॥1॥
कहु निज नाम जनक कर भाई। केहि नातें मानिऐ मिताई॥1॥
भावार्थ:- (रावण ने कहा-) अरे बंदर के बच्चे! सँभालकर बोल! मूर्ख! मुझ देवताओं के शत्रु को तूने जाना नहीं? अरे भाई! अपना और अपने बाप का नाम तो बता। किस नाते से मित्रता मानता है?॥1||
English: Mind what you speak, you little monkey. Fool, are you not aware of my being an avowed enemy of the gods? Tell me, young fellow, your own name as well as your fathers. What is the common ground on which you claim fellowship between your father and myself?
English: Mind what you speak, you little monkey. Fool, are you not aware of my being an avowed enemy of the gods? Tell me, young fellow, your own name as well as your fathers. What is the common ground on which you claim fellowship between your father and myself?
* अंगद नाम बालि कर बेटा। तासों कबहुँ भई ही भेंटा॥
अंगद बचन सुनत सकुचाना। रहा बालि बानर मैं जाना॥2॥
अंगद बचन सुनत सकुचाना। रहा बालि बानर मैं जाना॥2॥
भावार्थ:-(अंगद ने कहा-) मेरा नाम अंगद है, मैं बालि का पुत्र हूँ। उनसे कभी तुम्हारी भेंट हुई थी? अंगद का वचन सुनते ही रावण कुछ सकुचा गया (और बोला-) हाँ, मैं जान गया (मुझे याद आ गया), बालि नाम का एक बंदर था॥2||
* अंगद तहीं बालि कर बालक। उपजेहु बंस अनल कुल घालक॥
गर्भ न गयहु ब्यर्थ तुम्ह जायहु। निज मुख तापस दूत कहायहु॥3॥
गर्भ न गयहु ब्यर्थ तुम्ह जायहु। निज मुख तापस दूत कहायहु॥3॥
भावार्थ:- अरे अंगद! तू ही बालि का लड़का है? अरे कुलनाशक! तू तो अपने कुलरूपी बाँस के लिए अग्नि रूप ही पैदा हुआ! गर्भ में ही क्यों न नष्ट हो गया तू? व्यर्थ ही पैदा हुआ जो अपने ही मुँह से तपस्वियों का दूत कहलाया!॥3||
* अब कहु कुसल बालि कहँ अहई। बिहँसि बचन तब अंगद कहई॥
दिन दस गएँ बालि पहिं जाई। बूझेहु कुसल सखा उर लाई॥4॥
दिन दस गएँ बालि पहिं जाई। बूझेहु कुसल सखा उर लाई॥4॥
भावार्थ:- अब बालि की कुशल तो बता, वह (आजकल) कहाँ है? तब अंगद ने हँसकर कहा- दस (कुछ) दिन बीतने पर (स्वयं ही) बालि के पास जाकर, अपने मित्र को हृदय से लगाकर, उसी से कुशल पूछ लेना॥4||
English: Now tell me if all is well with vali and, if so, where is he? Angad laughed at this and then replied. Ten days hence you shall go to Vli and embracing your friend personally enquire after his welfare.
English: Now tell me if all is well with vali and, if so, where is he? Angad laughed at this and then replied. Ten days hence you shall go to Vli and embracing your friend personally enquire after his welfare.
* राम बिरोध कुसल जसि होई। सो सब तोहि सुनाइहि सोई॥
सुनु सठ भेद होइ मन ताकें। श्री रघुबीर हृदय नहिं जाकें॥5॥
सुनु सठ भेद होइ मन ताकें। श्री रघुबीर हृदय नहिं जाकें॥5॥
भावार्थ:-श्री रामजी से विरोध करने पर जैसी कुशल होती है, वह सब तुमको वे सुनावेंगे। हे मूर्ख! सुन, भेद उसी के मन में पड़ सकता है, (भेद नीति उसी पर अपना प्रभाव डाल सकती है) जिसके हृदय में श्री रघुवीर न हों॥5||
दोहा :
Doha:
Doha:
* हम कुल घालक सत्य तुम्ह कुल पालक दससीस।
अंधउ बधिर न अस कहहिं नयन कान तव बीस॥21॥
अंधउ बधिर न अस कहहिं नयन कान तव बीस॥21॥
भावार्थ:- सच है, मैं तो कुल का नाश करने वाला हूँ और हे रावण! तुम कुल के रक्षक हो। अंधे-बहरे भी ऐसी बात नहीं कहते, तुम्हारे तो बीस नेत्र और बीस कान हैं!॥21||
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* सिव बिरंचि सुर मुनि समुदाई। चाहत जासु चरन सेवकाई॥
तासु दूत होइ हम कुल बोरा। अइसिहुँ मति उर बिहर न तोरा॥1॥
तासु दूत होइ हम कुल बोरा। अइसिहुँ मति उर बिहर न तोरा॥1॥
भावार्थ:- शिव, ब्रह्मा (आदि) देवता और मुनियों के समुदाय जिनके चरणों की सेवा (करना) चाहते हैं, उनका दूत होकर मैंने कुल को डुबा दिया? अरे ऐसी बुद्धि होने पर भी तुम्हारा हृदय फट नहीं जाता?॥1||
* सुनि कठोर बानी कपि केरी। कहत दसानन नयन तरेरी॥
खल तव कठिन बचन सब सहऊँ। नीति धर्म मैं जानत अहऊँ॥2॥
खल तव कठिन बचन सब सहऊँ। नीति धर्म मैं जानत अहऊँ॥2॥
भावार्थ:- वानर (अंगद) की कठोर वाणी सुनकर रावण आँखें तरेरकर (तिरछी करके) बोला- अरे दुष्ट! मैं तेरे सब कठोर वचन इसीलिए सह रहा हूँ कि मैं नीति और धर्म को जानता हूँ (उन्हीं की रक्षा कर रहा हूँ)॥2||
English: When he heard the monkeys sharp rejoinder, Ravana glowered at him and said, Wretch, I put up with your harsh words only because I know the bounds of decorum and righteousness.
English: When he heard the monkeys sharp rejoinder, Ravana glowered at him and said, Wretch, I put up with your harsh words only because I know the bounds of decorum and righteousness.
* कह कपि धर्मसीलता तोरी। हमहुँ सुनी कृत पर त्रिय चोरी॥
देखी नयन दूत रखवारी। बूड़ि न मरहु धर्म ब्रतधारी॥3॥
देखी नयन दूत रखवारी। बूड़ि न मरहु धर्म ब्रतधारी॥3॥
भावार्थ:- अंगद ने कहा- तुम्हारी धर्मशीलता मैंने भी सुनी है। (वह यह कि) तुमने पराई स्त्री की चोरी की है! और दूत की रक्षा की बात तो अपनी आँखों से देख ली। ऐसे धर्म के व्रत को धारण (पालन) करने वाले तुम डूबकर मर नहीं जाते!॥3||
* कान नाक बिनु भगिनि निहारी। छमा कीन्हि तुम्ह धर्म बिचारी॥
धर्मसीलता तव जग जागी। पावा दरसु हमहुँ बड़भागी॥4॥
धर्मसीलता तव जग जागी। पावा दरसु हमहुँ बड़भागी॥4॥
भावार्थ:-नाक-कान से रहित बहिन को देखकर तुमने धर्म विचारकर ही तो क्षमा कर दिया था! तुम्हारी धर्मशीलता जगजाहिर है। मैं भी बड़ा भाग्यवान् हूँ, जो मैंने तुम्हारा दर्शन पाया?॥4||
English: When you saw your sister with her ears and nose cut off, it was from considerations of piety that you forgave the wrong. Your piety is famed throughout the world: I too am very fortunate in having been able to see you.
English: When you saw your sister with her ears and nose cut off, it was from considerations of piety that you forgave the wrong. Your piety is famed throughout the world: I too am very fortunate in having been able to see you.
दोहा :
Doha:
Doha:
* जनि जल्पसि जड़ जंतु कपि सठ बिलोकु मम बाहु।
लोकपाल बल बिपुल ससि ग्रसन हेतु सब राहु॥22 क॥
लोकपाल बल बिपुल ससि ग्रसन हेतु सब राहु॥22 क॥
भावार्थ:- (रावण ने कहा-) अरे जड़ जन्तु वानर! व्यर्थ बक-बक न कर, अरे मूर्ख! मेरी भुजाएँ तो देख। ये सब लोकपालों के विशाल बल रूपी चंद्रमा को ग्रसने के लिए राहु हैं॥22 (क)||
* पुनि नभ सर मम कर निकर कमलन्हि पर करि बास।
सोभत भयउ मराल इव संभु सहित कैलास॥22 ख॥
सोभत भयउ मराल इव संभु सहित कैलास॥22 ख॥
भावार्थ:- फिर (तूने सुना ही होगा कि) आकाश रूपी तालाब में मेरी भुजाओं रूपी कमलों पर बसकर शिवजी सहित कैलास हंस के समान शोभा को प्राप्त हुआ था!॥22 (ख)||
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* तुम्हरे कटक माझ सुनु अंगद। मो सन भिरिहि कवन जोधा बद॥
तब प्रभु नारि बिरहँ बलहीना। अनुज तासु दुख दुखी मलीना॥1॥
तब प्रभु नारि बिरहँ बलहीना। अनुज तासु दुख दुखी मलीना॥1॥
भावार्थ:- अरे अंगद! सुन, तेरी सेना में बता, ऐसा कौन योद्धा है, जो मुझसे भिड़ सकेगा। तेरा मालिक तो स्त्री के वियोग में बलहीन हो रहा है और उसका छोटा भाई उसी के दुःख से दुःखी और उदास है॥1||
* तुम्ह सुग्रीव कूलद्रुम दोऊ। अनुज हमार भीरु अति सोऊ॥
जामवंत मंत्री अति बूढ़ा। सो कि होइ अब समरारूढ़ा॥2॥
जामवंत मंत्री अति बूढ़ा। सो कि होइ अब समरारूढ़ा॥2॥
भावार्थ:- तुम और सुग्रीव, दोनों (नदी) तट के वृक्ष हो (रहा) मेरा छोटा भाई विभीषण, (सो) वह भी बड़ा डरपोक है। मंत्री जाम्बवान् बहुत बूढ़ा है। वह अब लड़ाई में क्या चढ़ (उद्यत हो) सकता है?॥2||
* सिल्पि कर्म जानहिं नल नीला। है कपि एक महा बलसीला॥
आवा प्रथम नगरु जेहिं जारा। सुनत बचन कह बालिकुमारा॥3॥
आवा प्रथम नगरु जेहिं जारा। सुनत बचन कह बालिकुमारा॥3॥
भावार्थ:- नल-नील तो शिल्प-कर्म जानते हैं (वे लड़ना क्या जानें?)। हाँ, एक वानर जरूर महान् बलवान् है, जो पहले आया था और जिसने लंका जलाई थी। यह वचन सुनते ही बालि पुत्र अंगद ने कहा-॥3||
* सत्य बचन कहु निसिचर नाहा। साँचेहुँ कीस कीन्ह पुर दाहा॥
रावण नगर अल्प कपि दहई। सुनि अस बचन सत्य को कहई॥4॥
रावण नगर अल्प कपि दहई। सुनि अस बचन सत्य को कहई॥4॥
भावार्थ:- हे राक्षसराज! सच्ची बात कहो! क्या उस वानर ने सचमुच तुम्हारा नगर जला दिया? रावण (जैसे जगद्विजयी योद्धा) का नगर एक छोटे से वानर ने जला दिया। ऐसे वचन सुनकर उन्हें सत्य कौन कहेगा?॥4||
* जो अति सुभट सराहेहु रावन। सो सुग्रीव केर लघु धावन॥
चलइ बहुत सो बीर न होई। पठवा खबरि लेन हम सोई॥5॥
चलइ बहुत सो बीर न होई। पठवा खबरि लेन हम सोई॥5॥
भावार्थ:- हे रावण! जिसको तुमने बहुत बड़ा योद्धा कहकर सराहा है, वह तो सुग्रीव का एक छोटा सा दौड़कर चलने वाला हरकारा है। वह बहुत चलता है, वीर नहीं है। उसको तो हमने (केवल) खबर लेने के लिए भेजा था॥5||
दोहा :
Doha:
Doha:
* सत्य नगरु कपि जारेउ बिनु प्रभु आयसु पाइ।
फिरि न गयउ सुग्रीव पहिं तेहिं भय रहा लुकाइ॥23 क॥
फिरि न गयउ सुग्रीव पहिं तेहिं भय रहा लुकाइ॥23 क॥
भावार्थ:- क्या सचमुच ही उस वानर ने प्रभु की आज्ञा पाए बिना ही तुम्हारा नगर जला डाला? मालूम होता है, इसी डर से वह लौटकर सुग्रीव के पास नहीं गया और कहीं छिप रहा!॥23 (क)||
English: "It seems true that the monkey set fire to your capital without receiving an order from his master. That is why he did not go back to Sugriva and remained in hiding for fear.
English: "It seems true that the monkey set fire to your capital without receiving an order from his master. That is why he did not go back to Sugriva and remained in hiding for fear.
* सत्य कहहि दसकंठ सब मोहि न सुनि कछु कोह।
कोउ न हमारें कटक अस तो सन लरत जो सोह॥23 ख॥
कोउ न हमारें कटक अस तो सन लरत जो सोह॥23 ख॥
भावार्थ:- हे रावण! तुम सब सत्य ही कहते हो, मुझे सुनकर कुछ भी क्रोध नहीं है। सचमुच हमारी सेना में कोई भी ऐसा नहीं है, जो तुमसे लड़ने में शोभा पाए॥23 (ख)||
English: All that you say, Ravana, is true and I am not in the least angry at hearing it. There is none in our army who would fight you with any amount of grace.
English: All that you say, Ravana, is true and I am not in the least angry at hearing it. There is none in our army who would fight you with any amount of grace.
* प्रीति बिरोध समान सन करिअ नीति असि आहि।
जौं मृगपति बध मेडुकन्हि भल कि कहइ कोउ ताहि॥23 ग॥
जौं मृगपति बध मेडुकन्हि भल कि कहइ कोउ ताहि॥23 ग॥
भावार्थ:- प्रीति और वैर बराबरी वाले से ही करना चाहिए, नीति ऐसी ही है। सिंह यदि मेंढकों को मारे, तो क्या उसे कोई भला कहेगा?॥23 (ग)||
English: Make friends or enter into hostilities only with your equals: this is a sound maxim to follow. If a lion were to kill frogs, will anyone speak well of him?
English: Make friends or enter into hostilities only with your equals: this is a sound maxim to follow. If a lion were to kill frogs, will anyone speak well of him?
* जद्यपि लघुता राम कहुँ तोहि बधें बड़ दोष।
तदपि कठिन दसकंठ सुनु छत्र जाति कर रोष॥23 घ॥
तदपि कठिन दसकंठ सुनु छत्र जाति कर रोष॥23 घ॥
भावार्थ:-यद्यपि तुम्हें मारने में श्री रामजी की लघुता है और बड़ा दोष भी है तथापि हे रावण! सुनो, क्षत्रिय जाति का क्रोध बड़ा कठिन होता है॥23 (घ)||
English: Though it would be derogatory on the part of Shri Ram to kill you and He will incur great blame thereby, yet, mark me, Ravana, the fury of the Kshatriya race is hard to face.
English: Though it would be derogatory on the part of Shri Ram to kill you and He will incur great blame thereby, yet, mark me, Ravana, the fury of the Kshatriya race is hard to face.
* बक्र उक्ति धनु बचन सर हृदय दहेउ रिपु कीस।
प्रतिउत्तर सड़सिन्ह मनहुँ काढ़त भट दससीस॥23 ङ॥
प्रतिउत्तर सड़सिन्ह मनहुँ काढ़त भट दससीस॥23 ङ॥
भावार्थ:-वक्रोक्ति रूपी धनुष से वचन रूपी बाण मारकर अंगद ने शत्रु का हृदय जला दिया। वीर रावण उन बाणों को मानो प्रत्युत्तर रूपी सँड़सियों से निकाल रहा है॥ 23 (ङ)||
English: The monkey (Angad) burnt the enemys heart with shafts of speech shot forth from the bow of sarcasm; and the ten-headed hero proceeded to extract the arrows, so to speak, with pairs of pincers in the form of rejoinders.
English: The monkey (Angad) burnt the enemys heart with shafts of speech shot forth from the bow of sarcasm; and the ten-headed hero proceeded to extract the arrows, so to speak, with pairs of pincers in the form of rejoinders.
* हँसि बोलेउ दसमौलि तब कपि कर बड़ गुन एक।
जो प्रतिपालइ तासु हित करइ उपाय अनेक॥23 च॥
जो प्रतिपालइ तासु हित करइ उपाय अनेक॥23 च॥
भावार्थ:- तब रावण हँसकर बोला- बंदर में यह एक बड़ा गुण है कि जो उसे पालता है, उसका वह अनेकों उपायों से भला करने की चेष्टा करता है॥23 (च)||
English: He laughed and said: "A monkey possesses one great virtue: it does everything in its power to serve him who maintains it."
English: He laughed and said: "A monkey possesses one great virtue: it does everything in its power to serve him who maintains it."
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* धन्य कीस जो निज प्रभु काजा। जहँ तहँ नाचइ परिहरि लाजा॥
नाचि कूदि करि लोग रिझाई। पति हित करइ धर्म निपुनाई॥1॥
नाचि कूदि करि लोग रिझाई। पति हित करइ धर्म निपुनाई॥1॥
भावार्थ:- बंदर को धन्य है, जो अपने मालिक के लिए लाज छोड़कर जहाँ-तहाँ नाचता है। नाच-कूदकर, लोगों को रिझाकर, मालिक का हित करता है। यह उसके धर्म की निपुणता है॥1||
English: "Bravo for a monkey, who dances unabashed in the service of its master anywhere and everywhere. Dancing and skipping about to amuse the people it serves the interest of its master; this shows its keen devotion to duty.
English: "Bravo for a monkey, who dances unabashed in the service of its master anywhere and everywhere. Dancing and skipping about to amuse the people it serves the interest of its master; this shows its keen devotion to duty.
* अंगद स्वामिभक्त तव जाती। प्रभु गुन कस न कहसि एहि भाँती॥
मैं गुन गाहक परम सुजाना। तव कटु रटनि करउँ नहिं काना॥2॥
मैं गुन गाहक परम सुजाना। तव कटु रटनि करउँ नहिं काना॥2॥
भावार्थ:-हे अंगद! तेरी जाति स्वामिभक्त है (फिर भला) तू अपने मालिक के गुण इस प्रकार कैसे न बखानेगा? मैं गुण ग्राहक (गुणों का आदर करने वाला) और परम सुजान (समझदार) हूँ, इसी से तेरी जली-कटी बक-बक पर कान (ध्यान) नहीं देता॥2||
English: Angad, all of your race are devoted to their lord; how could you, then, fail to extol the virtues of your master in the way you have done? I am a respecter of merit and too magnanimous to pay any attention to your scurrilously glib talk.
English: Angad, all of your race are devoted to their lord; how could you, then, fail to extol the virtues of your master in the way you have done? I am a respecter of merit and too magnanimous to pay any attention to your scurrilously glib talk.
* कह कपि तव गुन गाहकताई। सत्य पवनसुत मोहि सुनाई॥
बन बिधंसि सुत बधि पुर जारा। तदपि न तेहिं कछु कृत अपकारा॥3॥
बन बिधंसि सुत बधि पुर जारा। तदपि न तेहिं कछु कृत अपकारा॥3॥
भावार्थ:- अंगद ने कहा- तुम्हारी सच्ची गुण ग्राहकता तो मुझे हनुमान् ने सुनाई थी। उसने अशोक वन में विध्वंस (तहस-नहस) करके, तुम्हारे पुत्र को मारकर नगर को जला दिया था। तो भी (तुमने अपनी गुण ग्राहकता के कारण यही समझा कि) उसने तुम्हारा कुछ भी अपकार नहीं किया॥3||
English: Said Angad: The son of the wind-god gave me a true account of your partiality to merit. He laid waste your garden, killed your son and set fire to your city and yet (in your eyes) he did you no wrong.
English: Said Angad: The son of the wind-god gave me a true account of your partiality to merit. He laid waste your garden, killed your son and set fire to your city and yet (in your eyes) he did you no wrong.
* सोइ बिचारि तव प्रकृति सुहाई। दसकंधर मैं कीन्हि ढिठाई॥
देखेउँ आइ जो कछु कपि भाषा। तुम्हरें लाज न रोष न माखा॥4॥
देखेउँ आइ जो कछु कपि भाषा। तुम्हरें लाज न रोष न माखा॥4॥
भावार्थ:- तुम्हारा वही सुंदर स्वभाव विचार कर, हे दशग्रीव! मैंने कुछ धृष्टता की है। हनुमान् ने जो कुछ कहा था, उसे आकर मैंने प्रत्यक्ष देख लिया कि तुम्हें न लज्जा है, न क्रोध है और न चिढ़ है॥4||
English: Remembering such amiability of your disposition I have been so insolent in my behaviour with you, O Ravan. On coming here I have witnessed all that Hanuman told me, viz., that you have no shame, no anger and no feeling of resentment.
English: Remembering such amiability of your disposition I have been so insolent in my behaviour with you, O Ravan. On coming here I have witnessed all that Hanuman told me, viz., that you have no shame, no anger and no feeling of resentment.
*जौं असि मति पितु खाए कीसा। कहि अस बचन हँसा दससीसा॥
पितहि खाइ खातेउँ पुनि तोही। अबहीं समुझि परा कछु मोही॥5॥
पितहि खाइ खातेउँ पुनि तोही। अबहीं समुझि परा कछु मोही॥5॥
भावार्थ:- (रावण बोला-) अरे वानर! जब तेरी ऐसी बुद्धि है, तभी तो तू बाप को खा गया। ऐसा वचन कहकर रावण हँसा। अंगद ने कहा- पिता को खाकर फिर तुमको भी खा डालता, परन्तु अभी तुरंत कुछ और ही बात मेरी समझ में आ गई!॥5||
English: "Having been the death of my father I would have next claimed you as my victim; but a thought has come to me just now.
English: "Having been the death of my father I would have next claimed you as my victim; but a thought has come to me just now.
* बालि बिमल जस भाजन जानी। हतउँ न तोहि अधम अभिमानी॥
कहु रावन रावन जग केते। मैं निज श्रवन सुने सुनु जेते॥6॥
कहु रावन रावन जग केते। मैं निज श्रवन सुने सुनु जेते॥6॥
भावार्थ:- अरे नीच अभिमानी! बालि के निर्मल यश का पात्र (कारण) जानकर तुम्हें मैं नहीं मारता। रावण! यह तो बता कि जगत् में कितने रावण हैं? मैंने जितने रावण अपने कानों से सुन रखे हैं, उन्हें सुन-॥6||
English: Knowing you to be a living memorial of Bali's unsullied fame, I desist from killing you, O vile boaster. Tell me, Ravana, how many Ravana there are in the world? Or hear from me how many I have heard of.
English: Knowing you to be a living memorial of Bali's unsullied fame, I desist from killing you, O vile boaster. Tell me, Ravana, how many Ravana there are in the world? Or hear from me how many I have heard of.
* बलिहि जितन एक गयउ पताला। राखेउ बाँधि सिसुन्ह हयसाला॥
खेलहिं बालक मारहिं जाई। दया लागि बलि दीन्ह छोड़ाई॥7॥
खेलहिं बालक मारहिं जाई। दया लागि बलि दीन्ह छोड़ाई॥7॥
भावार्थ:- एक रावण तो बलि को जीतने पाताल में गया था, तब बच्चों ने उसे घुड़साल में बाँध रखा। बालक खेलते थे और जा-जाकर उसे मारते थे। बलि को दया लगी, तब उन्होंने उसे छुड़ा दिया॥7||
English: One went to the nether world (Pataal) to conquer Bali and was tied up in the stables by the children, who made sport of him and thrashed him till Bali took compassion on him and had him released.
English: One went to the nether world (Pataal) to conquer Bali and was tied up in the stables by the children, who made sport of him and thrashed him till Bali took compassion on him and had him released.
* एक बहोरि सहसभुज देखा। धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा॥
कौतुक लागि भवन लै आवा। सो पुलस्ति मुनि जाइ छोड़ावा॥8॥
कौतुक लागि भवन लै आवा। सो पुलस्ति मुनि जाइ छोड़ावा॥8॥
भावार्थ:- फिर एक रावण को सहस्रबाहु ने देखा, और उसने दौड़कर उसको एक विशेष प्रकार के (विचित्र) जन्तु की तरह (समझकर) पकड़ लिया। तमाशे के लिए वह उसे घर ले आया। तब पुलस्त्य मुनि ने जाकर उसे छुड़ाया॥8||
English: Another again was discovered by King Sahasrabahu who ran and captured him as a strange creature and brought him home for the sake of fun. The sage Pulastya then went and secured his release."
English: Another again was discovered by King Sahasrabahu who ran and captured him as a strange creature and brought him home for the sake of fun. The sage Pulastya then went and secured his release."
दोहा :
Doha:
Doha:
* एक कहत मोहि सकुच अति रहा बालि कीं काँख।
इन्ह महुँ रावन तैं कवन सत्य बदहि तजि माख॥24॥
इन्ह महुँ रावन तैं कवन सत्य बदहि तजि माख॥24॥
भावार्थ:- एक रावण की बात कहने में तो मुझे बड़ा संकोच हो रहा है- वह (बहुत दिनों तक) बालि की काँख में रहा था। इनमें से तुम कौन से रावण हो? खीझना छोड़कर सच-सच बताओ॥24||
English: "Yet another, I am much ashamed to tell you, was held tight under Bali's arm. Be not angry, Ravana, but tell me the truth, which of these may you be?"
English: "Yet another, I am much ashamed to tell you, was held tight under Bali's arm. Be not angry, Ravana, but tell me the truth, which of these may you be?"
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* सुनु सठ सोइ रावन बलसीला। हरगिरि जान जासु भुज लीला॥
जान उमापति जासु सुराई। पूजेउँ जेहि सिर सुमन चढ़ाई॥1॥
जान उमापति जासु सुराई। पूजेउँ जेहि सिर सुमन चढ़ाई॥1॥
भावार्थ:-(रावण ने कहा-) अरे मूर्ख! सुन, मैं वही बलवान् रावण हूँ, जिसकी भुजाओं की लीला (करामात) कैलास पर्वत जानता है। जिसकी शूरता उमापति महादेवजी जानते हैं, जिन्हें अपने सिर रूपी पुष्प चढ़ा-चढ़ाकर मैंने पूजा था॥1||
English: Listen, O fool: I am the same mighty Ravana, the sport of whose arms is familiar to Mount Kailash (the peak sacred to Lord Shiv) and whose valour is known to Uma's Spouse (Shiv Himself), in whose worship I offered my heads as flowers.
English: Listen, O fool: I am the same mighty Ravana, the sport of whose arms is familiar to Mount Kailash (the peak sacred to Lord Shiv) and whose valour is known to Uma's Spouse (Shiv Himself), in whose worship I offered my heads as flowers.
* सिर सरोज निज करन्हि उतारी। पूजेउँ अमित बार त्रिपुरारी॥
भुज बिक्रम जानहिं दिगपाला। सठ अजहूँ जिन्ह कें उर साला॥2॥
भुज बिक्रम जानहिं दिगपाला। सठ अजहूँ जिन्ह कें उर साला॥2॥
भावार्थ:- सिर रूपी कमलों को अपने हाथों से उतार-उतारकर मैंने अगणित बार त्रिपुरारि शिवजी की पूजा की है। अरे मूर्ख! मेरी भुजाओं का पराक्रम दिक्पाल जानते हैं, जिनके हृदय में वह आज भी चुभ रहा है॥2||
English: Times without number have I removed my lotus-like heads with my own hands to worship Lord Shiv (the Slayer of Tripura). The prowess of my arms is well-known to the guardians of the eight quarters, whose heart, you fool, still smarts under injuries inflicted by them.
English: Times without number have I removed my lotus-like heads with my own hands to worship Lord Shiv (the Slayer of Tripura). The prowess of my arms is well-known to the guardians of the eight quarters, whose heart, you fool, still smarts under injuries inflicted by them.
* जानहिं दिग्गज उर कठिनाई। जब जब भिरउँ जाइ बरिआई॥
जिन्ह के दसन कराल न फूटे। उर लागत मूलक इव टूटे॥3॥
जिन्ह के दसन कराल न फूटे। उर लागत मूलक इव टूटे॥3॥
भावार्थ:- दिग्गज (दिशाओं के हाथी) मेरी छाती की कठोरता को जानते हैं। जिनके भयानक दाँत, जब-जब जाकर मैं उनसे जबरदस्ती भिड़ा, मेरी छाती में कभी नहीं फूटे (अपना चिह्न भी नहीं बना सके), बल्कि मेरी छाती से लगते ही वे मूली की तरह टूट गए॥3||
English: The toughness of my chest is familiar to the elephants supporting the eight quarters, whose fierce tusks, whenever I impetuously grappled with them, failed to make any impression on it and snapped off like radishes the moment they struck against it.
English: The toughness of my chest is familiar to the elephants supporting the eight quarters, whose fierce tusks, whenever I impetuously grappled with them, failed to make any impression on it and snapped off like radishes the moment they struck against it.
* जासु चलत डोलति इमि धरनी। चढ़त मत्त गज जिमि लघु तरनी॥
सोइ रावन जग बिदित प्रतापी। सुनेहि न श्रवन अलीक प्रलापी॥4॥
सोइ रावन जग बिदित प्रतापी। सुनेहि न श्रवन अलीक प्रलापी॥4॥
भावार्थ:- जिसके चलते समय पृथ्वी इस प्रकार हिलती है जैसे मतवाले हाथी के चढ़ते समय छोटी नाव! मैं वही जगत प्रसिद्ध प्रतापी रावण हूँ। अरे झूठी बकवास करने वाले! क्या तूने मुझको कानों से कभी सुना?॥4||
English: Even as I walk, the earth shakes like a small boat when a mad elephant steps into it. I am the same Ravan, known for his might all over the world; did you never hear of him, you lying prattler?"
English: Even as I walk, the earth shakes like a small boat when a mad elephant steps into it. I am the same Ravan, known for his might all over the world; did you never hear of him, you lying prattler?"
दोहा :
Doha:
Doha:
* तेहि रावन कहँ लघु कहसि नर कर करसि बखान।
रे कपि बर्बर खर्ब खल अब जाना तव ग्यान॥25॥
रे कपि बर्बर खर्ब खल अब जाना तव ग्यान॥25॥
भावार्थ:- उस (महान प्रतापी और जगत प्रसिद्ध) रावण को (मुझे) तू छोटा कहता है और मनुष्य की बड़ाई करता है? अरे दुष्ट, असभ्य, तुच्छ बंदर! अब मैंने तेरा ज्ञान जान लिया॥25||
English: "You belittle that Ravana and extol a mortal man? Barbarous monkey, O puny wretch. I have now fathomed your wisdom."
English: "You belittle that Ravana and extol a mortal man? Barbarous monkey, O puny wretch. I have now fathomed your wisdom."
चौपाई :
Chaupa:
Chaupa:
* सुनि अंगद सकोप कह बानी। बोलु संभारि अधम अभिमानी॥
सहसबाहु भुज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कुठारा॥1॥
सहसबाहु भुज गहन अपारा। दहन अनल सम जासु कुठारा॥1॥
भावार्थ:- रावण के ये वचन सुनकर अंगद क्रोध सहित वचन बोले- अरे नीच अभिमानी! सँभलकर (सोच-समझकर) बोल। जिनका फरसा सहस्रबाहु की भुजाओं रूपी अपार वन को जलाने के लिए अग्नि के समान था,॥1||
English: On hearing this, Angad indignantly replied: Take care what you say, you vainglorious wretch. How can He be accounted a man, you wretched Ravana, at whose very sight melted away the pride of Parasuram-the same Parasuram whose axe was like a fire to consume King Sahasrabahu's boundless forest of arms,
English: On hearing this, Angad indignantly replied: Take care what you say, you vainglorious wretch. How can He be accounted a man, you wretched Ravana, at whose very sight melted away the pride of Parasuram-the same Parasuram whose axe was like a fire to consume King Sahasrabahu's boundless forest of arms,
* जासु परसु सागर खर धारा। बूड़े नृप अगनित बहु बारा॥
तासु गर्ब जेहि देखत भागा। सो नर क्यों दससीस अभागा॥2॥
तासु गर्ब जेहि देखत भागा। सो नर क्यों दससीस अभागा॥2॥
भावार्थ:- जिनके फरसा रूपी समुद्र की तीव्र धारा में अनगिनत राजा अनेकों बार डूब गए, उन परशुरामजी का गर्व जिन्हें देखते ही भाग गया, अरे अभागे दशशीश! वे मनुष्य क्यों कर हैं?॥2||
English: or (to use another simile) like the sea in whose swift tide have drowned innumerable kings time after time.
English: or (to use another simile) like the sea in whose swift tide have drowned innumerable kings time after time.
* राम मनुज कस रे सठ बंगा। धन्वी कामु नदी पुनि गंगा॥
पसु सुरधेनु कल्पतरु रूखा। अन्न दान अरु रस पीयूषा॥3॥
पसु सुरधेनु कल्पतरु रूखा। अन्न दान अरु रस पीयूषा॥3॥
भावार्थ:- क्यों रे मूर्ख उद्दण्ड! श्री रामचंद्रजी मनुष्य हैं? कामदेव भी क्या धनुर्धारी है? और गंगाजी क्या नदी हैं? कामधेनु क्या पशु है? और कल्पवृक्ष क्या पेड़ है? अन्न भी क्या दान है? और अमृत क्या रस है?॥3||
English: How can Shri Ram be a mortal, you arrogant fool? Is the god of love a mere archer, the Ganga a mere stream, the cow of plenty a mere beast, the tree of Paradise a mere tree, the gift of food an ordinary gift, nectar an ordinary drink,
English: How can Shri Ram be a mortal, you arrogant fool? Is the god of love a mere archer, the Ganga a mere stream, the cow of plenty a mere beast, the tree of Paradise a mere tree, the gift of food an ordinary gift, nectar an ordinary drink,
* बैनतेय खग अहि सहसानन। चिंतामनि पुनि उपल दसानन॥
सुनु मतिमंद लोक बैकुंठा। लाभ कि रघुपति भगति अकुंठा॥4॥
सुनु मतिमंद लोक बैकुंठा। लाभ कि रघुपति भगति अकुंठा॥4॥
भावार्थ:- गरुड़जी क्या पक्षी हैं? शेषजी क्या सर्प हैं? अरे रावण! चिंतामणि भी क्या पत्थर है? अरे ओ मूर्ख! सुन, वैकुण्ठ भी क्या लोक है? और श्री रघुनाथजी की अखण्ड भक्ति क्या (और लाभों जैसा ही) लाभ है?॥4||
English: Garuda (the mount of God Vishnu) a mere bird, the thousand-headed Shesh a mere serpent and the wish-yielding gem a mere stone, O ten-headed monster? Listen, O dullard: is Vaikunth an ordinary sphere and unflinching devotion to the Lord of the Raghus an ordinary gain?
English: Garuda (the mount of God Vishnu) a mere bird, the thousand-headed Shesh a mere serpent and the wish-yielding gem a mere stone, O ten-headed monster? Listen, O dullard: is Vaikunth an ordinary sphere and unflinching devotion to the Lord of the Raghus an ordinary gain?
दोहा :
Doha:
Doha:
* सेन सहित तव मान मथि बन उजारि पुर जारि।
कस रे सठ हनुमान कपि गयउ जो तव सुत मारि॥26॥
कस रे सठ हनुमान कपि गयउ जो तव सुत मारि॥26॥
भावार्थ:- सेना समेत तेरा मान मथकर, अशोक वन को उजाड़कर, नगर को जलाकर और तेरे पुत्र को मारकर जो लौट गए (तू उनका कुछ भी न बिगाड़ सका), क्यों रे दुष्ट! वे हनुमान्जी क्या वानर हैं?॥26||
English: "What! is Hanuman, O fool, an ordinary monkey, who got off unhurt after trampling your pride as well as that of your army, laying waste your garden, setting your capital on fire and slaying your own son?"
English: "What! is Hanuman, O fool, an ordinary monkey, who got off unhurt after trampling your pride as well as that of your army, laying waste your garden, setting your capital on fire and slaying your own son?"
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* सुनु रावन परिहरि चतुराई। भजसि न कृपासिंधु रघुराई॥
जौं खल भएसि राम कर द्रोही। ब्रह्म रुद्र सक राखि न तोही॥1॥
जौं खल भएसि राम कर द्रोही। ब्रह्म रुद्र सक राखि न तोही॥1॥
भावार्थ:-अरे रावण! चतुराई (कपट) छोड़कर सुन। कृपा के समुद्र श्री रघुनाथजी का तू भजन क्यों नहीं करता? अरे दुष्ट! यदि तू श्री रामजी का वैरी हुआ तो तुझे ब्रह्मा और रुद्र भी नहीं बचा सकेंगे।|1||
English: "Listen, Ravana: giving up all hypocrisy, why do you not adore the All-merciful Lord of the Raghus? Oh wretch, if you pit yourself against Ram, even Brahma (the Creator) and Rudra (Lord Shiv) cannot save you.
English: "Listen, Ravana: giving up all hypocrisy, why do you not adore the All-merciful Lord of the Raghus? Oh wretch, if you pit yourself against Ram, even Brahma (the Creator) and Rudra (Lord Shiv) cannot save you.
* मूढ़ बृथा जनि मारसि गाला। राम बयर अस होइहि हाला॥
तव सिर निकर कपिन्ह के आगें। परिहहिं धरनि राम सर लागें॥2॥
तव सिर निकर कपिन्ह के आगें। परिहहिं धरनि राम सर लागें॥2॥
भावार्थ:- हे मूढ़! व्यर्थ गाल न मार (डींग न हाँक)। श्री रामजी से वैर करने पर तेरा ऐसा हाल होगा कि तेरे सिर समूह श्री रामजी के बाण लगते ही वानरों के आगे पृथ्वी पर पड़ेंगे,॥2||
English: Fool, brag not in vain; if you contend with Ram, such will be your fate: struck with Shri Ram's arrows your many heads will fall to the ground in front of the monkeys
English: Fool, brag not in vain; if you contend with Ram, such will be your fate: struck with Shri Ram's arrows your many heads will fall to the ground in front of the monkeys
* ते तव सिर कंदुक सम नाना। खेलिहहिं भालु कीस चौगाना॥
जबहिं समर कोपिहि रघुनायक। छुटिहहिं अति कराल बहु सायक॥3॥
जबहिं समर कोपिहि रघुनायक। छुटिहहिं अति कराल बहु सायक॥3॥
भावार्थ:- और रीछ-वानर तेरे उन गेंद के समान अनेकों सिरों से चौगान खेलेंगे। जब श्री रघुनाथजी युद्ध में कोप करेंगे और उनके अत्यंत तीक्ष्ण बहुत से बाण छूटेंगे,॥3||
English: and the bears and monkeys will play with those heads as with so many balls. When the Lord of the Raghus gets enraged in battle and His many fierce arrows dart,
English: and the bears and monkeys will play with those heads as with so many balls. When the Lord of the Raghus gets enraged in battle and His many fierce arrows dart,
* तब कि चलिहि अस गाल तुम्हारा। अस बिचारि भजु राम उदारा॥
सुनत बचन रावन परजरा। जरत महानल जनु घृत परा॥4॥
सुनत बचन रावन परजरा। जरत महानल जनु घृत परा॥4॥
भावार्थ:- तब क्या तेरा गाल चलेगा? ऐसा विचार कर उदार (कृपालु) श्री रामजी को भज। अंगद के ये वचन सुनकर रावण बहुत अधिक जल उठा। मानो जलती हुई प्रचण्ड अग्नि में घी पड़ गया हो॥4||
English: will you then be able to bounce like this? Realizing this, adore the high-souled Shri Ram." On hearing these words Ravana flared up like a blazing fire on which clarified butter has been thrown.
English: will you then be able to bounce like this? Realizing this, adore the high-souled Shri Ram." On hearing these words Ravana flared up like a blazing fire on which clarified butter has been thrown.
दोहा :
Doha:
Doha:
* कुंभकरन अस बंधु मम सुत प्रसिद्ध सक्रारि।
मोर पराक्रम नहिं सुनेहि जितेऊँ चराचर झारि॥27॥
मोर पराक्रम नहिं सुनेहि जितेऊँ चराचर झारि॥27॥
भावार्थ:- (वह बोला- अरे मूर्ख!) कुंभकर्ण- ऐसा मेरा भाई है, इन्द्र का शत्रु सुप्रसिद्ध मेघनाद मेरा पुत्र है! और मेरा पराक्रम तो तूने सुना ही नहीं कि मैंने संपूर्ण जड़-चेतन जगत् को जीत लिया है!॥27||
English: "I have a brother like Kumbhkarna (lit., one having ears as big as a pair of jars) and the renowned Meghnad (the vanquisher of Indra) for my son. And have you never heard of my own valour, by which I have conquered the entire creation, both animate and inanimate?"
English: "I have a brother like Kumbhkarna (lit., one having ears as big as a pair of jars) and the renowned Meghnad (the vanquisher of Indra) for my son. And have you never heard of my own valour, by which I have conquered the entire creation, both animate and inanimate?"
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* सठ साखामृग जोरि सहाई। बाँधा सिंधु इहइ प्रभुताई॥
नाघहिं खग अनेक बारीसा। सूर न होहिं ते सुनु सब कीसा॥1॥
नाघहिं खग अनेक बारीसा। सूर न होहिं ते सुनु सब कीसा॥1॥
भावार्थ:- रे दुष्ट! वानरों की सहायता जोड़कर राम ने समुद्र बाँध लिया, बस, यही उसकी प्रभुता है। समुद्र को तो अनेकों पक्षी भी लाँघ जाते हैं। पर इसी से वे सभी शूरवीर नहीं हो जाते। अरे मूर्ख बंदर! सुन-॥1||
English: "Fool, with the help of monkeys your master has bridged the ocean; is this what you call valour? There are many birds which fly across the ocean; yet listen, O monkey,
English: "Fool, with the help of monkeys your master has bridged the ocean; is this what you call valour? There are many birds which fly across the ocean; yet listen, O monkey,
* मम भुज सागर बल जल पूरा। जहँ बूड़े बहु सुर नर सूरा॥
बीस पयोधि अगाध अपारा। को अस बीर जो पाइहि पारा॥2॥
बीस पयोधि अगाध अपारा। को अस बीर जो पाइहि पारा॥2॥
भावार्थ:- मेरा एक-एक भुजा रूपी समुद्र बल रूपी जल से पूर्ण है, जिसमें बहुत से शूरवीर देवता और मनुष्य डूब चूके हैं। (बता,) कौन ऐसा शूरवीर है, जो मेरे इन अथाह और अपार बीस समुद्रों का पार पा जाएगा?॥2||
English: they are no heroes all. Now each of my arms is a veritable ocean, brimming over with a flood of strength, beneath which many a valiant god and man has been drowned. What hero is there, who will cross these twenty unfathomable and boundless oceans?
English: they are no heroes all. Now each of my arms is a veritable ocean, brimming over with a flood of strength, beneath which many a valiant god and man has been drowned. What hero is there, who will cross these twenty unfathomable and boundless oceans?
* दिगपालन्ह मैं नीर भरावा। भूप सुजस खल मोहि सुनावा॥
जौं पै समर सुभट तव नाथा। पुनि पुनि कहसि जासु गुन गाथा॥3॥
जौं पै समर सुभट तव नाथा। पुनि पुनि कहसि जासु गुन गाथा॥3॥
भावार्थ:- अरे दुष्ट! मैंने दिक्पालों तक से जल भरवाया और तू एक राजा का मुझे सुयश सुनाता है! यदि तेरा मालिक, जिसकी गुणगाथा तू बार-बार कह रहा है, संग्राम में लड़ने वाला योद्धा है-॥3||
English: I made the guardians of the eight quarters do menial service to me; while you, O wretch, glorify an earthly prince before me! If your lord, whose virtues you recount again and again, is valiant in battle,
English: I made the guardians of the eight quarters do menial service to me; while you, O wretch, glorify an earthly prince before me! If your lord, whose virtues you recount again and again, is valiant in battle,
* तौ बसीठ पठवत केहि काजा। रिपु सन प्रीति करत नहिं लाजा॥
हरगिरि मथन निरखु मम बाहू। पुनि सठ कपि निज प्रभुहि सराहू॥4॥
हरगिरि मथन निरखु मम बाहू। पुनि सठ कपि निज प्रभुहि सराहू॥4॥
भावार्थ:- तो (फिर) वह दूत किसलिए भेजता है? शत्रु से प्रीति (सन्धि) करते उसे लाज नहीं आती? (पहले) कैलास का मथन करने वाली मेरी भुजाओं को देख। फिर अरे मूर्ख वानर! अपने मालिक की सराहना करना॥4||
English: why does he send an ambassador to me? Is he not ashamed to make terms with his enemy? Look at my arms, which lifted and violently shook Mount Kailash, and then, foolish monkey, extol your master, if you like."
English: why does he send an ambassador to me? Is he not ashamed to make terms with his enemy? Look at my arms, which lifted and violently shook Mount Kailash, and then, foolish monkey, extol your master, if you like."
दोहा :
Doha:
Doha:
* सूर कवन रावन सरिस स्वकर काटि जेहिं सीस।
हुने अनल अति हरष बहु बार साखि गौरीस॥28॥
हुने अनल अति हरष बहु बार साखि गौरीस॥28॥
भावार्थ:- रावण के समान शूरवीर कौन है? जिसने अपने हाथों से सिर काट-काटकर अत्यंत हर्ष के साथ बहुत बार उन्हें अग्नि में होम दिया! स्वयं गौरीपति शिवजी इस बात के साक्षी हैं॥28||
English: "What hero is there equal to Ravana, who with his own hands cut off his heads time and again and offered them to the sacrificial fire with great delight, as will be borne out by Gauri's Spouse (Lord Shiva) Himself."
English: "What hero is there equal to Ravana, who with his own hands cut off his heads time and again and offered them to the sacrificial fire with great delight, as will be borne out by Gauri's Spouse (Lord Shiva) Himself."
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* जरत बिलोकेउँ जबहि कपाला। बिधि के लिखे अंक निज भाला॥
नर कें कर आपन बध बाँची। हसेउँ जानि बिधि गिरा असाँची॥1॥
नर कें कर आपन बध बाँची। हसेउँ जानि बिधि गिरा असाँची॥1॥
भावार्थ:- मस्तकों के जलते समय जब मैंने अपने ललाटों पर लिखे हुए विधाता के अक्षर देखे, तब मनुष्य के हाथ से अपनी मृत्यु होना बाँचकर, विधाता की वाणी (लेख को) असत्य जानकर मैं हँसा॥1||
English: When as my skulls began to burn I saw the decree of Providence traced on my brow and read that I was going to die at the hands of a mortal, I laughed;
English: When as my skulls began to burn I saw the decree of Providence traced on my brow and read that I was going to die at the hands of a mortal, I laughed;
* सोउ मन समुझि त्रास नहिं मोरें। लिखा बिरंचि जरठ मति भोरें॥
आन बीर बल सठ मम आगें। पुनि पुनि कहसि लाज पति त्यागें॥2॥
आन बीर बल सठ मम आगें। पुनि पुनि कहसि लाज पति त्यागें॥2॥
भावार्थ:- उस बात को समझकर (स्मरण करके) भी मेरे मन में डर नहीं है। (क्योंकि मैं समझता हूँ कि) बूढ़े ब्रह्मा ने बुद्धि भ्रम से ऐसा लिख दिया है। अरे मूर्ख! तू लज्जा और मर्यादा छोड़कर मेरे आगे बार-बार दूसरे वीर का बल कहता है!॥2||
English: for I knew Brahma's prophecy to be false. I am not afraid in my heart even when I remember this; for (I am sure) Brahma must have traced the decree in his senile dementia. Yet, you fool, you repeatedly exalt the might of another hero in my presence,giving up all shame and decorum.
English: for I knew Brahma's prophecy to be false. I am not afraid in my heart even when I remember this; for (I am sure) Brahma must have traced the decree in his senile dementia. Yet, you fool, you repeatedly exalt the might of another hero in my presence,giving up all shame and decorum.
* कह अंगद सलज्ज जग माहीं। रावन तोहि समान कोउ नाहीं॥
लाजवंत तव सहज सुभाऊ। निज मुख निज गुन कहसि न काऊ॥3॥
लाजवंत तव सहज सुभाऊ। निज मुख निज गुन कहसि न काऊ॥3॥
भावार्थ:- अंगद ने कहा- अरे रावण! तेरे समान लज्जावान् जगत् में कोई नहीं है। लज्जाशीलता तो तेरा सहज स्वभाव ही है। तू अपने मुँह से अपने गुण कभी नहीं कहता॥3||
English: Angad replied: Yes, there is no one in the whole world so shamefaced as you. You are bashful by your innate disposition, since you never indulge in self-praise.
English: Angad replied: Yes, there is no one in the whole world so shamefaced as you. You are bashful by your innate disposition, since you never indulge in self-praise.
* सिर अरु सैल कथा चित रही। ताते बार बीस तैं कहीं॥
सो भुजबल राखेहु उर घाली। जीतेहु सहसबाहु बलि बाली॥4॥
सो भुजबल राखेहु उर घाली। जीतेहु सहसबाहु बलि बाली॥4॥
भावार्थ:- सिर काटने और कैलास उठाने की कथा चित्त में चढ़ी हुई थी, इससे तूने उसे बीसों बार कहा। भुजाओं के उस बल को तूने हृदय में ही टाल (छिपा) रखा है, जिससे तूने सहस्रबाहु, बलि और बालि को जीता था॥4||
English: Only the story of offering your heads (to Lord Shiv) and lifting the mountain (Kailash) has been foremost in your mind and hence you have told it twenty times over. As for (the tale of) that strength of arm by which you were able to conquer Sahasrabahu, Bali and Vali.
English: Only the story of offering your heads (to Lord Shiv) and lifting the mountain (Kailash) has been foremost in your mind and hence you have told it twenty times over. As for (the tale of) that strength of arm by which you were able to conquer Sahasrabahu, Bali and Vali.
* सुनु मतिमंद देहि अब पूरा। काटें सीस कि होइअ सूरा॥
इंद्रजालि कहुँ कहिअ न बीरा। काटइ निज कर सकल सरीरा॥5॥
इंद्रजालि कहुँ कहिअ न बीरा। काटइ निज कर सकल सरीरा॥5॥
भावार्थ:- अरे मंद बुद्धि! सुन, अब बस कर। सिर काटने से भी क्या कोई शूरवीर हो जाता है? इंद्रजाल रचने वाले को वीर नहीं कहा जाता, यद्यपि वह अपने ही हाथों अपना सारा शरीर काट डालता है!॥5||
दोहा :
Doha:
Doha:
* जरहिं पतंग मोह बस भार बहहिं खर बृंद।
ते नहिं सूर कहावहिं समुझि देखु मतिमंद॥29॥
ते नहिं सूर कहावहिं समुझि देखु मतिमंद॥29॥
भावार्थ:-अरे मंद बुद्धि! समझकर देख। पतंगे मोहवश आग में जल मरते हैं, गदहों के झुंड बोझ लादकर चलते हैं, पर इस कारण वे शूरवीर नहीं कहलाते॥29||
चौपाई :
Chaupai:
Chaupai:
* अब जनि बतबढ़ाव खल करही। सुनु मम बचन मान परिहरही॥
दसमुख मैं न बसीठीं आयउँ। अस बिचारि रघुबीर पठायउँ॥1॥
दसमुख मैं न बसीठीं आयउँ। अस बिचारि रघुबीर पठायउँ॥1॥
भावार्थ:- अरे दुष्ट! अब बतबढ़ाव मत कर, मेरा वचन सुन और अभिमान त्याग दे! हे दशमुख! मैं दूत की तरह (सन्धि करने) नहीं आया हूँ। श्री रघुवीर ने ऐसा विचार कर मुझे भेजा है-॥1||
English:
English:
* बार बार अस कहइ कृपाला। नहिं गजारि जसु बंधे सृकाला॥
मन महुँ समुझि बचन प्रभु केरे। सहेउँ कठोर बचन सठ तेरे॥2॥
मन महुँ समुझि बचन प्रभु केरे। सहेउँ कठोर बचन सठ तेरे॥2॥
भावार्थ:- कृपालु श्री रामजी बार-बार ऐसा कहते हैं कि स्यार के मारने से सिंह को यश नहीं मिलता। अरे मूर्ख! प्रभु के (उन) वचनों को मन में समझकर (याद करके) ही मैंने तेरे कठोर वचन सहे हैं॥2॥
* नाहिं त करि मुख भंजन तोरा। लैं जातेउँ सीतहि बरजोरा॥
जानेउँ तव बल अधम सुरारी। सूनें हरि आनिहि परनारी॥3॥
जानेउँ तव बल अधम सुरारी। सूनें हरि आनिहि परनारी॥3॥
भावार्थ:- नहीं तो तेरे मुँह तोड़कर मैं सीताजी को जबरदस्ती ले जाता। अरे अधम! देवताओं के शत्रु! तेरा बल तो मैंने तभी जान लिया, जब तू सूने में पराई स्त्री को हर (चुरा) लाया॥3॥
* तै निसिचर पति गर्ब बहूता। मैं रघुपति सेवक कर दूता॥
जौं न राम अपमानहिं डरऊँ। तोहि देखत अस कौतुक करउँ॥4॥
जौं न राम अपमानहिं डरऊँ। तोहि देखत अस कौतुक करउँ॥4॥
भावार्थ:- तू राक्षसों का राजा और बड़ा अभिमानी है, परन्तु मैं तो श्री रघुनाथजी के सेवक (सुग्रीव) का दूत (सेवक का भी सेवक) हूँ। यदि मैं श्री रामजी के अपमान से न डरूँ तो तेरे देखते-देखते ऐसा तमाशा करूँ कि-॥4॥
दोहा :
* तोहि पटकि महि सेन हति चौपट करि तव गाउँ।
तव जुबतिन्ह समेत सठ जनकसुतहि लै जाउँ॥30॥
तव जुबतिन्ह समेत सठ जनकसुतहि लै जाउँ॥30॥
भावार्थ:- तुझे जमीन पर पटककर, तेरी सेना का संहार कर और तेरे गाँव को चौपट (नष्ट-भ्रष्ट) करके, अरे मूर्ख! तेरी युवती स्त्रियों सहित जानकीजी को ले जाऊँ॥30॥
चौपाई :
* जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥
कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥1॥
कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥1॥
भावार्थ:- यदि ऐसा करूँ, तो भी इसमें कोई बड़ाई नहीं है। मरे हुए को मारने में कुछ भी पुरुषत्व (बहादुरी) नहीं है। वाममार्गी, कामी, कंजूस, अत्यंत मूढ़, अति दरिद्र, बदनाम, बहुत बूढ़ा,॥1॥
* सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥
तनु पोषक निंदक अघ खानी जीवत सव सम चौदह प्रानी॥2॥
तनु पोषक निंदक अघ खानी जीवत सव सम चौदह प्रानी॥2॥
भावार्थ:-नित्य का रोगी, निरंतर क्रोधयुक्त रहने वाला, भगवान् विष्णु से विमुख, वेद और संतों का विरोधी, अपना ही शरीर पोषण करने वाला, पराई निंदा करने वाला और पाप की खान (महान् पापी)- ये चौदह प्राणी जीते ही मुरदे के समान हैं॥2॥
* अस बिचारि खल बधउँ न तोही। अब जनि रिस उपजावसि मोही॥
सुनि सकोप कह निसिचर नाथा। अधर दसन दसि मीजत हाथा॥3॥
सुनि सकोप कह निसिचर नाथा। अधर दसन दसि मीजत हाथा॥3॥
भावार्थ:- अरे दुष्ट! ऐसा विचार कर मैं तुझे नहीं मारता। अब तू मुझमें क्रोध न पैदा कर (मुझे गुस्सा न दिला)। अंगद के वचन सुनकर राक्षस राज रावण दाँतों से होठ काटकर, क्रोधित होकर हाथ मलता हुआ बोला-॥3॥
* रे कपि अधम मरन अब चहसी। छोटे बदन बात बड़ि कहसी॥
कटु जल्पसि जड़ कपि बल जाकें। बल प्रताप बुधि तेज न ताकें॥4॥
कटु जल्पसि जड़ कपि बल जाकें। बल प्रताप बुधि तेज न ताकें॥4॥
भावार्थ:- अरे नीच बंदर! अब तू मरना ही चाहता है! इसी से छोटे मुँह बड़ी बात कहता है। अरे मूर्ख बंदर! तू जिसके बल पर कड़ुए वचन बक रहा है, उसमें बल, प्रताप, बुद्धि अथवा तेज कुछ भी नहीं है॥4॥
दोहा :
* अगुन अमान जानि तेहि दीन्ह पिता बनबास।
सो दुख अरु जुबती बिरह पुनि निसि दिन मम त्रास॥31 क॥
सो दुख अरु जुबती बिरह पुनि निसि दिन मम त्रास॥31 क॥
भावार्थ:-उसे गुणहीन और मानहीन समझकर ही तो पिता ने वनवास दे दिया। उसे एक तो वह (उसका) दुःख, उस पर युवती स्त्री का विरह और फिर रात-दिन मेरा डर बना रहता है॥31 (क)॥
* जिन्ह के बल कर गर्ब तोहि अइसे मनुज अनेक।
खाहिं निसाचर दिवस निसि मूढ़ समुझु तजि टेक॥31 ख॥
खाहिं निसाचर दिवस निसि मूढ़ समुझु तजि टेक॥31 ख॥
भावार्थ:-जिनके बल का तुझे गर्व है, ऐसे अनेकों मनुष्यों को तो राक्षस रात-दिन खाया करते हैं। अरे मूढ़! जिद्द छोड़कर समझ (विचार कर)॥ 31 (ख)॥
चौपाई :
* जब तेहिं कीन्हि राम कै निंदा। क्रोधवंत अति भयउ कपिंदा॥
हरि हर निंदा सुनइ जो काना। होइ पाप गोघात समाना॥1॥
हरि हर निंदा सुनइ जो काना। होइ पाप गोघात समाना॥1॥
भावार्थ:-जब उसने श्री रामजी की निंदा की, तब तो कपिश्रेष्ठ अंगद अत्यंत क्रोधित हुए, क्योंकि (शास्त्र ऐसा कहते हैं कि) जो अपने कानों से भगवान् विष्णु और शिव की निंदा सुनता है, उसे गो वध के समान पाप होता है॥1॥
* कटकटान कपिकुंजर भारी। दुहु भुजदंड तमकि महि मारी॥
डोलत धरनि सभासद खसे। चले भाजि भय मारुत ग्रसे॥2॥
डोलत धरनि सभासद खसे। चले भाजि भय मारुत ग्रसे॥2॥
भावार्थ:-वानर श्रेष्ठ अंगद बहुत जोर से कटकटाए (शब्द किया) और उन्होंने तमककर (जोर से) अपने दोनों भुजदण्डों को पृथ्वी पर दे मारा। पृथ्वी हिलने लगी, (जिससे बैठे हुए) सभासद् गिर पड़े और भय रूपी पवन (भूत) से ग्रस्त होकर भाग चले॥2॥
* गिरत सँभारि उठा दसकंधर। भूतल परे मुकुट अति सुंदर॥
कछु तेहिं लै निज सिरन्हि सँवारे। कछु अंगद प्रभु पास पबारे॥3॥
कछु तेहिं लै निज सिरन्हि सँवारे। कछु अंगद प्रभु पास पबारे॥3॥
भावार्थ:-रावण गिरते-गिरते सँभलकर उठा। उसके अत्यंत सुंदर मुकुट पृथ्वी पर गिर पड़े। कुछ तो उसने उठाकर अपने सिरों पर सुधाकर रख लिए और कुछ अंगद ने उठाकर प्रभु श्री रामचंद्रजी के पास फेंक दिए॥3॥
* आवत मुकुट देखि कपि भागे। दिनहीं लूक परन बिधि लागे॥
की रावन करि कोप चलाए। कुलिस चारि आवत अति धाए॥4॥
की रावन करि कोप चलाए। कुलिस चारि आवत अति धाए॥4॥
भावार्थ:- मुकुटों को आते देखकर वानर भागे। (सोचने लगे) विधाता! क्या दिन में ही उल्कापात होने लगा (तारे टूटकर गिरने लगे)? अथवा क्या रावण ने क्रोध करके चार वज्र चलाए हैं, जो बड़े धाए के साथ (वेग से) आ रहे हैं?॥4॥
* कह प्रभु हँसि जनि हृदयँ डेराहू। लूक न असनि केतु नहिं राहू॥
ए किरीट दसकंधर केरे। आवत बालितनय के प्रेरे॥5॥
ए किरीट दसकंधर केरे। आवत बालितनय के प्रेरे॥5॥
भावार्थ:- प्रभु ने (उनसे) हँसकर कहा- मन में डरो नहीं। ये न उल्का हैं, न वज्र हैं और न केतु या राहु ही हैं। अरे भाई! ये तो रावण के मुकुट हैं, जो बालिपुत्र अंगद के फेंके हुए आ रहे हैं॥5॥
दोहा :
* तरकि पवनसुत कर गहे आनि धरे प्रभु पास।
कौतुक देखहिं भालु कपि दिनकर सरिस प्रकास॥32 क॥
कौतुक देखहिं भालु कपि दिनकर सरिस प्रकास॥32 क॥
भावार्थ:-पवन पुत्र श्री हनुमान्जी ने उछलकर उनको हाथ से पकड़ लिया और लाकर प्रभु के पास रख दिया। रीछ और वानर तमाशा देखने लगे। उनका प्रकाश सूर्य के समान था॥32 (क)॥
* उहाँ सकोपि दसानन सब सन कहत रिसाइ।
धरहु कपिहि धरि मारहु सुनि अंगद मुसुकाइ॥32 ख॥
धरहु कपिहि धरि मारहु सुनि अंगद मुसुकाइ॥32 ख॥
भावार्थ:- वहाँ (सभा में) क्रोधयुक्त रावण सबसे क्रोधित होकर कहने लगा कि- बंदर को पकड़ लो और पकड़कर मार डालो। अंगद यह सुनकर मुस्कुराने लगे॥32 (ख)॥
चौपाई :
* एहि बधि बेगि सुभट सब धावहु। खाहु भालु कपि जहँ जहँ पावहु॥
मर्कटहीन करहु महि जाई। जिअत धरहु तापस द्वौ भाई॥1॥
मर्कटहीन करहु महि जाई। जिअत धरहु तापस द्वौ भाई॥1॥
भावार्थ:- (रावण फिर बोला-) इसे मारकर सब योद्धा तुरंत दौड़ो और जहाँ कहीं रीछ-वानरों को पाओ, वहीं खा डालो। पृथ्वी को बंदरों से रहित कर दो और जाकर दोनों तपस्वी भाइयों (राम-लक्ष्मण) को जीते जी पकड़ लो॥1॥
* पुनि सकोप बोलेउ जुबराजा। गाल बजावत तोहि न लाजा॥
मरु गर काटि निलज कुलघाती। बल बिलोकि बिहरति नहिं छाती॥2॥
मरु गर काटि निलज कुलघाती। बल बिलोकि बिहरति नहिं छाती॥2॥
भावार्थ:-(रावण के ये कोपभरे वचन सुनकर) तब युवराज अंगद क्रोधित होकर बोले- तुझे गाल बजाते लाज नहीं आती! अरे निर्लज्ज! अरे कुलनाशक! गला काटकर (आत्महत्या करके) मर जा! मेरा बल देखकर भी क्या तेरी छाती नहीं फटती!॥2॥
* रे त्रिय चोर कुमारग गामी। खल मल रासि मंदमति कामी॥
सन्यपात जल्पसि दुर्बादा। भएसि कालबस खल मनुजादा॥3॥
सन्यपात जल्पसि दुर्बादा। भएसि कालबस खल मनुजादा॥3॥
भावार्थ:- अरे स्त्री के चोर! अरे कुमार्ग पर चलने वाले! अरे दुष्ट, पाप की राशि, मन्द बुद्धि और कामी! तू सन्निपात में क्या दुर्वचन बक रहा है? अरे दुष्ट राक्षस! तू काल के वश हो गया है!॥3॥
* याको फलु पावहिगो आगें। बानर भालु चपेटन्हि लागें॥
रामु मनुज बोलत असि बानी। गिरहिं न तव रसना अभिमानी॥4॥
रामु मनुज बोलत असि बानी। गिरहिं न तव रसना अभिमानी॥4॥
भावार्थ:- इसका फल तू आगे वानर और भालुओं के चपेटे लगने पर पावेगा। राम मनुष्य हैं, ऐसा वचन बोलते ही, अरे अभिमानी! तेरी जीभें नहीं गिर पड़तीं?॥4॥
* गिरिहहिं रसना संसय नाहीं। सिरन्हि समेत समर महि माहीं॥5॥
भावार्थ:- इसमें संदेह नहीं है कि तेरी जीभें (अकेले नहीं वरन) सिरों के साथ रणभूमि में गिरेंगी॥5॥
सोरठा :
* सो नर क्यों दसकंध बालि बध्यो जेहिं एक सर।
बीसहुँ लोचन अंध धिग तव जन्म कुजाति जड़॥33 क॥
बीसहुँ लोचन अंध धिग तव जन्म कुजाति जड़॥33 क॥
भावार्थ:- रे दशकन्ध! जिसने एक ही बाण से बालि को मार डाला, वह मनुष्य कैसे है? अरे कुजाति, अरे जड़! बीस आँखें होने पर भी तू अंधा है। तेरे जन्म को धिक्कार है॥33 (क)॥
* तव सोनित कीं प्यास तृषित राम सायक निकर।
तजउँ तोहि तेहि त्रास कटु जल्पक निसिचर अधम॥33 ख॥
तजउँ तोहि तेहि त्रास कटु जल्पक निसिचर अधम॥33 ख॥
भावार्थ:-श्री रामचंद्रजी के बाण समूह तेरे रक्त की प्यास से प्यासे हैं। (वे प्यासे ही रह जाएँगे) इस डर से, अरे कड़वी बकवाद करने वाले नीच राक्षस! मैं तुझे छोड़ता हूँ॥33 (ख)॥
चौपाई :
* मैं तव दसन तोरिबे लायक। आयसु मोहि न दीन्ह रघुनायक॥
असि रिस होति दसउ मुख तोरौं। लंका गहि समुद्र महँ बोरौं॥1॥
असि रिस होति दसउ मुख तोरौं। लंका गहि समुद्र महँ बोरौं॥1॥
भावार्थ:-मैं तेरे दाँत तोड़ने में समर्थ हूँ। पर क्या करूँ? श्री रघुनाथजी ने मुझे आज्ञा नहीं दी। ऐसा क्रोध आता है कि तेरे दसों मुँह तोड़ डालूँ और (तेरी) लंका को पकड़कर समुद्र में डुबो दूँ॥1॥
* गूलरि फल समान तव लंका। बसहु मध्य तुम्ह जंतु असंका॥
मैं बानर फल खात न बारा। आयसु दीन्ह न राम उदारा॥2॥
मैं बानर फल खात न बारा। आयसु दीन्ह न राम उदारा॥2॥
भावार्थ:-तेरी लंका गूलर के फल के समान है। तुम सब कीड़े उसके भीतर (अज्ञानवश) निडर होकर बस रहे हो। मैं बंदर हूँ, मुझे इस फल को खाते क्या देर थी? पर उदार (कृपालु) श्री रामचंद्रजी ने वैसी आज्ञा नहीं दी॥2॥
* जुगुति सुनत रावन मुसुकाई। मूढ़ सिखिहि कहँ बहुत झुठाई॥
बालि न कबहुँ गाल अस मारा। मिलि तपसिन्ह तैं भएसि लबारा॥3॥
बालि न कबहुँ गाल अस मारा। मिलि तपसिन्ह तैं भएसि लबारा॥3॥
भावार्थ:-अंगद की युक्ति सुनकर रावण मुस्कुराया (और बोला-) अरे मूर्ख! बहुत झूठ बोलना तूने कहाँ से सीखा? बालि ने तो कभी ऐसा गाल नहीं मारा। जान पड़ता है तू तपस्वियों से मिलकर लबार हो गया है॥3॥
*साँचेहुँ मैं लबार भुज बीहा। जौं न उपारिउँ तव दस जीहा॥
समुझि राम प्रताप कपि कोपा। सभा माझ पन करि पद रोपा॥4॥
समुझि राम प्रताप कपि कोपा। सभा माझ पन करि पद रोपा॥4॥
भावार्थ:-(अंगद ने कहा-) अरे बीस भुजा वाले! यदि तेरी दसों जीभें मैंने नहीं उखाड़ लीं तो सचमुच मैं लबार ही हूँ। श्री रामचंद्रजी के प्रताप को समझकर (स्मरण करके) अंगद क्रोधित हो उठे और उन्होंने रावण की सभा में प्रण करके (दृढ़ता के साथ) पैर रोप दिया॥4॥
* जौं मम चरन सकसि सठ टारी। फिरहिं रामु सीता मैं हारी॥
सुनहु सुभट सब कह दससीसा। पद गहि धरनि पछारहु कीसा॥5॥
सुनहु सुभट सब कह दससीसा। पद गहि धरनि पछारहु कीसा॥5॥
भावार्थ:-(और कहा-) अरे मूर्ख! यदि तू मेरा चरण हटा सके तो श्री रामजी लौट जाएँगे, मैं सीताजी को हार गया। रावण ने कहा- हे सब वीरो! सुनो, पैर पकड़कर बंदर को पृथ्वी पर पछाड़ दो॥5॥
* इंद्रजीत आदिक बलवाना। हरषि उठे जहँ तहँ भट नाना॥
झपटहिं करि बल बिपुल उपाई। पद न टरइ बैठहिं सिरु नाई॥6॥
झपटहिं करि बल बिपुल उपाई। पद न टरइ बैठहिं सिरु नाई॥6॥
* पुनि उठि झपटहिं सुर आराती। टरइ न कीस चरन एहि भाँती॥
पुरुष कुजोगी जिमि उरगारी। मोह बिटप नहिं सकहिं उपारी॥7॥
पुरुष कुजोगी जिमि उरगारी। मोह बिटप नहिं सकहिं उपारी॥7॥
भावार्थ:-(काकभुशुण्डिजी कहते हैं-) वे देवताओं के शत्रु (राक्षस) फिर उठकर झपटते हैं, परन्तु हे सर्पों के शत्रु गरुड़जी! अंगद का चरण उनसे वैसे ही नहीं टलता जैसे कुयोगी (विषयी) पुरुष मोह रूपी वृक्ष को नहीं उखाड़ सकते॥7॥
दोहा :
* कोटिन्ह मेघनाद सम सुभट उठे हरषाइ।
झपटहिं टरै न कपि चरन पुनि बैठहिं सिर नाइ॥34 क॥
झपटहिं टरै न कपि चरन पुनि बैठहिं सिर नाइ॥34 क॥
भावार्थ:-करोड़ों वीर योद्धा जो बल में मेघनाद के समान थे, हर्षित होकर उठे, वे बार-बार झपटते हैं, पर वानर का चरण नहीं उठता, तब लज्जा के मारे सिर नवाकर बैठ जाते हैं॥34 (क)॥
* भूमि न छाँड़त कपि चरन देखत रिपु मद भाग।
कोटि बिघ्न ते संत कर मन जिमि नीति न त्याग॥34 ख॥
कोटि बिघ्न ते संत कर मन जिमि नीति न त्याग॥34 ख॥
भावार्थ:-जैसे करोड़ों विघ्न आने पर भी संत का मन नीति को नहीं छोड़ता, वैसे ही वानर (अंगद) का चरण पृथ्वी को नहीं छोड़ता। यह देखकर शत्रु (रावण) का मद दूर हो गया!॥34 (ख)॥
चौपाई :
* कपि बल देखि सकल हियँ हारे। उठा आपु कपि कें परचारे॥
गहत चरन कह बालिकुमारा। मम पद गहें न तोर उबारा॥1॥
गहत चरन कह बालिकुमारा। मम पद गहें न तोर उबारा॥1॥
भावार्थ:-अंगद का बल देखकर सब हृदय में हार गए। तब अंगद के ललकारने पर रावण स्वयं उठा। जब वह अंगद का चरण पकड़ने लगा, तब बालि कुमार अंगद ने कहा- मेरा चरण पकड़ने से तेरा बचाव नहीं होगा!॥1॥
*गहसि न राम चरन सठ जाई॥ सुनत फिरा मन अति सकुचाई॥
भयउ तेजहत श्री सब गई। मध्य दिवस जिमि ससि सोहई॥2॥
भयउ तेजहत श्री सब गई। मध्य दिवस जिमि ससि सोहई॥2॥
भावार्थ:-अरे मूर्ख- तू जाकर श्री रामजी के चरण क्यों नहीं पकड़ता? यह सुनकर वह मन में बहुत ही सकुचाकर लौट गया। उसकी सारी श्री जाती रही। वह ऐसा तेजहीन हो गया जैसे मध्याह्न में चंद्रमा दिखाई देता है॥2॥
* सिंघासन बैठेउ सिर नाई। मानहुँ संपति सकल गँवाई॥
जगदातमा प्रानपति रामा। तासु बिमुख किमि लह बिश्रामा॥3॥
जगदातमा प्रानपति रामा। तासु बिमुख किमि लह बिश्रामा॥3॥
भावार्थ:-वह सिर नीचा करके सिंहासन पर जा बैठा। मानो सारी सम्पत्ति गँवाकर बैठा हो। श्री रामचंद्रजी जगत्भर के आत्मा और प्राणों के स्वामी हैं। उनसे विमुख रहने वाला शांति कैसे पा सकता है?॥3॥
* उमा राम की भृकुटि बिलासा। होइ बिस्व पुनि पावइ नासा॥
तृन ते कुलिस कुलिस तृन करई। तासु दूत पन कहु किमि टरई॥4॥
तृन ते कुलिस कुलिस तृन करई। तासु दूत पन कहु किमि टरई॥4॥
भावार्थ:-(शिवजी कहते हैं-) हे उमा! जिन श्री रामचंद्रजी के भ्रूविलास (भौंह के इशारे) से विश्व उत्पन्न होता है और फिर नाश को प्राप्त होता है, जो तृण को वज्र और वज्र को तृण बना देते हैं (अत्यंत निर्बल को महान् प्रबल और महान् प्रबल को अत्यंत निर्बल कर देते हैं), उनके दूत का प्रण कहो, कैसे टल सकता है?॥4॥
* पुनि कपि कही नीति बिधि नाना। मान न ताहि कालु निअराना॥
रिपु मद मथि प्रभु सुजसु सुनायो। यह कहि चल्यो बालि नृप जायो॥5॥
रिपु मद मथि प्रभु सुजसु सुनायो। यह कहि चल्यो बालि नृप जायो॥5॥
भावार्थ:-फिर अंगद ने अनेकों प्रकार से नीति कही। पर रावण नहीं माना, क्योंकि उसका काल निकट आ गया था। शत्रु के गर्व को चूर करके अंगद ने उसको प्रभु श्री रामचंद्रजी का सुयश सुनाया और फिर वह राजा बालि का पुत्र यह कहकर चल दिया-॥5॥
* हतौं न खेत खेलाइ खेलाई। तोहि अबहिं का करौं बड़ाई॥
प्रथमहिं तासु तनय कपि मारा। सो सुनि रावन भयउ दुखारा॥6॥
प्रथमहिं तासु तनय कपि मारा। सो सुनि रावन भयउ दुखारा॥6॥
भावार्थ:-रणभूमि में तुझे खेला-खेलाकर न मारूँ तब तक अभी (पहले से) क्या बड़ाई करूँ। अंगद ने पहले ही (सभा में आने से पूर्व ही) उसके पुत्र को मार डाला था। वह संवाद सुनकर रावण दुःखी हो गया॥6॥
* जातुधान अंगद पन देखी। भय ब्याकुल सब भए बिसेषी॥7॥
भावार्थ:-अंगद का प्रण (सफल) देखकर सब राक्षस भय से अत्यन्त ही व्याकुल हो गए॥7॥
दोहा :
* रिपु बल धरषि हरषि कपि बालितनय बल पुंज।
पुलक सरीर नयन जल गहे राम पद कंज॥35 क॥
पुलक सरीर नयन जल गहे राम पद कंज॥35 क॥
भावार्थ:-शत्रु के बल का मर्दन कर, बल की राशि बालि पुत्र अंगदजी ने हर्षित होकर आकर श्री रामचंद्रजी के चरणकमल पकड़ लिए। उनका शरीर पुलकित है और नेत्रों में (आनंदाश्रुओं का) जल भरा है॥35 (क)॥