अरण्यकाण्ड - मंगलाचरण

तृतीय सोपान-मंगलाचरण
Descent Three-Manglacharan

श्लोक :
Shlok:

* मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं
वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।
मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शंकरं
वंदे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्री रामभूपप्रियम्॥1॥
भावार्थ:-धर्म रूपी वृक्ष के मूल, विवेक रूपी समुद्र को आनंद देने वाले पूर्णचन्द्र, वैराग्य रूपी कमल के (विकसित करने वाले) सूर्य, पाप रूपी घोर अंधकार को निश्चय ही मिटाने वाले, तीनों तापों को हरने वाले, मोह रूपी बादलों के समूह को छिन्न-भिन्न करने की विधि (क्रिया) में आकाश से उत्पन्न पवन स्वरूप, ब्रह्माजी के वंशज (आत्मज) तथा कलंकनाशक, महाराज श्री रामचन्द्रजी के प्रिय श्री शंकरजी की मैं वंदना करता हूँ॥1||

English: I reverence Bhagvan Shankara, the progeny of Brahma, the very root of the tree of piety, the beloved, devotee of King Shri Ram, the full moon that brings joy to the ocean of wisdom, the sun that opens the lotus of dispassion, the wind that disperses the clouds of ignorance, who dispels the thick darkness of sin and eradicates the threefold agony and who wipes off obloquy.
* सान्द्रानन्दपयोदसौभगतनुं पीताम्बरं सुंदरं
पाणौ बाणशरासनं कटिलसत्तूणीरभारं वरम्।
राजीवायतलोचनं धृतजटाजूटेन संशोभितं
सीतालक्ष्मणसंयुतं पथिगतं रामाभिरामं भजे॥2॥
भावार्थ:-जिनका शरीर जलयुक्त मेघों के समान सुंदर (श्यामवर्ण) एवं आनंदघन है, जो सुंदर (वल्कल का) पीत वस्त्र धारण किए हैं, जिनके हाथों में बाण और धनुष हैं, कमर उत्तम तरकस के भार से सुशोभित है, कमल के समान विशाल नेत्र हैं और मस्तक पर जटाजूट धारण किए हैं, उन अत्यन्त शोभायमान श्री सीताजी और लक्ष्मणजी सहित मार्ग में चलते हुए आनंद देने वाले श्री रामचन्द्रजी को मैं भजता हूँ॥2||

English: I worship Shri Ram, the delighter of all, whose graceful form is an embodiment of joy and is dark as a rainy cloud, who is clad in a charming yellow bark and carries in His hands a bow and an arrow who has a beautiful, shining and well-equipped quiver fastened to His waist and has a pair of large lotus eyes, who is adorned with a tuft of matted locks on His head and who is seen journeying with Sita and Lakshman. 
सोरठा :
Sortha:
* उमा राम गुन गूढ़ पंडित मुनि पावहिं बिरति।
पावहिं मोह बिमूढ़ जे हरि बिमुख न धर्म रति॥
भावार्थ:-हे पार्वती! श्री रामजी के गुण गूढ़ हैं, पण्डित और मुनि उन्हें समझकर वैराग्य प्राप्त करते हैं, परन्तु जो भगवान से विमुख हैं और जिनका धर्म में प्रेम नहीं है, वे महामूढ़ (उन्हें सुनकर) मोह को प्राप्त होते हैं|

English: Shri Ram`s virtues, Uma(Parvati), are mysterious. The sages as well as learned men develop dispassion (when they appreciate them ); while the deluded fools who are hostile to Shri Hari and have no love for piety get bewildered to hear of them.
चौपाई :
Chaupai :

पुर नर भरत प्रीति मैं गाई। मति अनुरूप अनूप सुहाई॥
अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। करत जे बन सुर नर मुनि भावन॥1॥
भावार्थ:-पुरवासियों के और भरतजी के अनुपम और सुंदर प्रेम का मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार गान किया। अब देवता, मनुष्य और मुनियों के मन को भाने वाले प्रभु श्री रामचन्द्रजी के वे अत्यन्त पवित्र चरित्र सुनो, जिन्हें वे वन में कर रहे हैं॥१॥ 

English: I have portrayed to the best of my ability the incomparable and charming affection ( for Shri Ram) of the citizens (of Ayodhya) as well as of Bharata. Now hear of the all-holy exploits of the Lord, that He wrought in the forest to the delight of gods, men and sages.



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